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पसंद-नापसंद लोगों की लिस्ट हमें बनाती है पक्षपाती

 

कहा जाता है कि 'फ़र्स्ट इम्प्रेशन इज़ द लास्ट इम्प्रेशन'। पर शायद यह भी हो सकता है कि आप जिससे पहली बार मिल रही हैं, वह आप से मिलते समय किसी चिंता या फ़िक्र में हो, किसी वजह से नर्वस हो या किसी मुश्किल में हो और उस समय शायद आप से अच्छी तरह बात नहीं कर सका तब अधिकतर लोग ऐसे व्यक्ति के बारे में पहली बार में थोड़ा निगेटिव सोच लेते हैं, उस व्यक्ति को एरोगंट या डम्ब मान बैठते हैं। अलबत्ता, हर मामले में ऐसा नहीं होता। कभी आप जिस व्यक्ति के बारे में ग़लत धारणा बनाए बैठी हैं, उससे जैसे-जैसे परिचय होता जाता है, वैसे-वैसे अनुभव होता है कि आप उसे जितना घमंडी या डम्ब समझ रही थीं, वह उतना घमंडी या डम्ब नहीं है। यह तो मात्र उदाहरण है। यह तो मात्र पहली मीटिंग यानी फ़र्स्ट इम्प्रेशन की बात है। बाक़ी इस तरह देखा जाए तो हम सभी के पास पसंद और नापसंद लोगों की पूरी लिस्ट होती है। ज़्यादातर यह लिस्ट में स्त्रियों की अधिक लंबी होती है। इसलिए होता यह है कि पसंद लोगों की हर बात हम ख़ुशी-ख़ुशी पचा लेते हैं और नापसंद लोगों की अच्छी बात में भी अनेक कमियाँ निकालते हैं। पसंद लोगों की ख़राब बात के लिए भी आंख-कान बंद करने में हिचकिचाहट नहीं होती, जबकि नापसंद लोगों की अच्छी बात को भी चिल्ला-चिल्लाकर सब से कहती फिरती हैं। 

किसी भी व्यक्ति के लिए किसी भी तरह की ग्रंथि न पालें

हम कभी यह नहीं सोचतीं कि पसंद-नापसंद व्यक्ति की लिस्ट हमें पक्षपाती बना देती है। हम हर व्यक्ति के साथ मन में रहने वाली मान्यता के अनुसार ही व्यवहार करती हैं। मनुष्य बहुत स्वार्थी होता है। वह अपनी ज़रूरत के अनुसार अपनी पसंद और नापसंद व्यक्ति की लिस्ट क्रिएट (सूची बनाया) करता है। यह बात कड़वी, पर उतनी ही सत्य है। ख़ास कर महिलाओं में यह अधिक देखने को मिलता है। यहाँ किसी तरह की टीका की बात नहीं है, पर महिलाएँ ख़ुद को टटोल कर तटस्थतापूर्वक देखेगी तो उन्हें ख़्याल आएगा कि ससुराल के लोगों के लिए उनके मन में ख़राब विचार मायके के लोगों की अपेक्षा अधिक है। अपनी बहन के प्रति अलग लगाव और पति की बहन के लिए अलग विचार। अपनी माँ के लिए अलग सोच और पति की माँ के लिए अलग सोच। नो डाऊट (निस्संदेह), सभी मामलों में ऐसा नहीं हो सकता। अमुक मामलों में ख़राब अनुभवों के आधार पर भी सोच और व्यवहार बदल जाता है। पर ज़्यादातर पसंद और नापसंद लोगों की लिस्ट (सूची) ऐसे ही बनती है। आप ख़ुद ही सोचिए कि आप को एक भी कड़वी बात अप की सास या ननद ने कही हो तो इसके लिए आप का रिएक्शन (प्रतिक्रिया) कैसा होगा और आप की बहन या माँ ने वही बात कही हो तो इसके लिए आप का रिएक्शन कैसा होगा। सीधी बात है, फेर पड़ेगा ही। सगी माँ और बहन की कही बातों में लगाव है, यह सोच कर आप ग्रहण कर लेगीं अथवा भूल जाएँगी। जबकि सास या ननद ने वही बात कही हो तो वह बात जल्दी नहीं भूलेंगी। उस बात को मन के किसी कोने में इतनी कड़वाहट के साथ सँभाल कर रखेंगी कि आप को हमेशा ऐसा लगता रहेगा कि मौक़ा मिलते ही उस बात को ब्याज के साथ सामने वाले के समक्ष रख दूँ। 

ज़्यादातर समस्याएँ इसी वजह से होती हैं

ज़्यादातर पारिवारिक समस्याएँ इसी पसंद-नापसंद की लिस्ट की वजह से होती हैं। यहाँ पढ़ा-लिखा, कम पढ़ा-लिखा या मार्डन (आधुनिक) कोई भी हो सकता है, इस मामले में हर एक की मानसिकता एक जैसी ही होती है। इसी वजह से घरों में किचकिच होती है। क्योंकि अपनी पसंद के लोगों की अच्छी-ख़राब बातों को हम नज़रअंदाज़ कर देती हैं, जबकि नापसंद या कम नापसंद लोगों की छोटी सी ग़लत बात को हम सहन नहीं कर पातीं। अधिकांश मामलों में तो यह होता है कि नौकरी करने वाली महिला अपना बच्चा सँभालने के लिए अपनी सास की अपेक्षा अपनी माँ या मायके वालों पर अधिक भरोसा करती है। बच्चे को रखने की हर एक की अपनी अलग रीति होती है। पर तमाम महिलाओं को मायके वाले उसके बच्चे को किसी भी तरह रखें, उसे अच्छा लगता है। जबकि ससुराल वाले उसी तरह रखते हैं तो इस मामले में सत्तर शिकायतें होती हैं। यह तो मात्र बच्चे का उदाहरण था, संबंधों में इस तरह न जाने कितना होता रहता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि आप का यही पक्षपातीपन घर में अधिकांशत: किचकिच का कारण बनता है। यहाँ रोज़-रोज़ के जीवन के कितने ही उदाहरण दिए जा सकते हैं। आप ख़ुद ही निष्पक्षता से एक बार सोच कर देखेंगी तो आप को अंदाज़ लग जाएगा कि आप कितने लोगों के प्रति पक्षपाती हैं और कितने लोगों की छोटी-छोटी बातें भी खटकती हैं। हम हर किसी के लिए क्यों समभाव नहीं रख सकतीं यह सवाल ख़ुद से ज़रूर करना चाहिए। नो डाऊट (निस्संदेह), कभी-कभी अनेक लोगों की ओर से हमें कड़वे अनुभव होते हैं, पर कहीं न कहीं ये कड़वे अनुभव भी उनकी नापसंद लोगों की लिस्ट में हमारे होने के कारण ही होते हैं। आप को जिस व्यक्ति की ओर से कड़वा अनुभव हुआ हो, उस व्यक्ति से दूर रहना सीखें, पर मेरातेरा कर के पसंद लोगों की और नापसंद लोगों की लिस्ट न बनाएँ। इस लिस्ट के कारण कभी-कभी हम इस हद तक चली जाती हैं कि नापसंद लोगों के बारे में कुछ भी कहने से नहीं हिचकतीं। ऐसे तमाम मामलों में यह भी होता है कि महिला के मायके में उसके माता-पिता एकदम साधारण स्थिति में होते हैं तो उनके प्रति भारी करुणा होती है। वह कुछ भी कर के अपने माता-पिता की मदद के लिए तत्पर रहती है। इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है, मदद करनी भी चाहिए। पर दूसरी ओर कुछ मामलों में ऐसा होता है कि पति के माता-पिता साधारण परस्थिति में होते हैं और उनका गुज़ारा बेटे के वेतन पर होता है, तब महिलाओं का व्यवहार एकदम अलग हो जाता है। अपना पति माता-पिता की मदद कर के कितना बड़ा उपकार कर रहा है, यह सोचने वाली भी महिलाएँ हैं। पर यहाँ केवल महिलाओं की ही बात नहीं हो रही है, कुछ हद तक पुरुषों में भी ऐसा होता है। पर पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा पसंद-नापसंद लोगों की लिस्ट की भावना बहुत कम होती है। यह कड़वी वास्तविकता है। कभी-कभार हर व्यक्ति से ख़ुद से यह सवाल कर के जितना हो सके उतना तटस्थ रहने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने पर अनेक सवाल अपने आप दूर हो जाएँगे। 

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