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बस तुम हो, इससे विशेष जीवन में और क्या हो सकता है

कहते हैं कि मीठा झगड़ा तो हर ‘कपल’ (जोड़े) के बीच होना ही चाहिए। क्योंकि मीठा झगड़ा सम्बन्ध को और मज़बूत बनाता है। पर हर झगड़े की एक सीमा होना अत्यंत ज़रूरी है। हर झगड़े के बाद एक-दूसरे के नज़दीक आने के बजाय एक-दूसरे से दूर हो जाएँ, ऐसा झगड़ा नहीं होना चाहिए। पार्थ और प्रेमा के विवाह के दस साल जितना समय हो गया था। धीरे-धीरे परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी का भार इतना बढ़ गया था कि यह भार उन्हें परेशान कर देता था। परिणामस्वरूप दोनों के बीच अक़्सर कहा-सुनी हो जाती थी। झगड़ा तो पहले भी होता था, पर विवाह के बाद शुरूआत के सालों में दोनों के बीच होने वाली अनबन बहुत जल्दी ठीक हो जाती थी। बेडरूम में जाते ही ज़्यादातर वे एक-दूसरे पर आए ग़ुस्से को भूल जाते थे। पर समय के साथ ग़ुस्से को भूलने की यह आदत भी भूलने लगी थी। अब दोनों के बीच की अनबन जल्दी ‘साल्व’ (सुलटती) नहीं होती थी। इतना ही नहीं, दोनों कमरे में आते तो उनके पास तमाम दलीलें होतीं। इन दलीलों के हथियार को नीचे रख कर वे समाधान करने के बजाय अब दोनों के बीच ‘ईगो’(दंभ)  नाम का राक्षस आ गया था। अब दोनों का झगड़ा यथावत रहता और तुम मेरी बात नहीं समझोगे डायलाग के बाद दोनों अपने अंदर भारी अशान्ति ले कर करवट बदल कर सो जाते। अलबत्ता, आँख न मुँदती, नींद न आती। ऐसा होता कि दोनों के बीच की यह अनबन दो-चार या पाँच दिन न साल्व (सुलटती) होती। झगड़े के ‘साल्युशन’ (समाधान) के बाद भी कुछ बातें मन में रह जातीं। ये बातें आगे दूसरा झगड़ा होता तब उखड़तीं और बड़ा स्वरूप धारण कर के उखड़तीं। इस तरह दोनों के बीच की खाई अनजाने में बढ़ती जा रही थी। 

परिवार और झगड़ा

पति-पत्नी के बीच होने वाले लगभग हर झगड़े में 80 प्रतिशत झगड़े का कारण परिवार ही होता है। समय के साथ ‘कपल’ (जोड़े) के ऊपर तरह-तरह की ज़िम्मेदारी का भार बढ़ता जाता है तो इस तरह की अनबन होने के चांसेज (अवसर) भी बढ़ जाते हैं। ऐसे में बैलेंस (संतुलन) करके चलना ही ठीक होता है। अगर बैलेंस (संतुलन) में थोड़ी भी गड़बड़ी हुई तो समझ लीजिए कि समस्या शुरू हो गई। इसलिए अगर परिवार के कारण पति-पत्नी में झगड़ा होता है तो खुले मन से एक-दूसरे से बात करनी चाहिए। एक-दूसरे को बात करने का मौक़ा भी देना चाहिए। एक-दूसरे को समझना भी चाहिए। समझ कर ही किसी भी समस्या का साल्युशन (समाधान) निकालें। मेरा परिवार ही सही है, यह एटिट्यूड (अवधारणा) रखने के बजाय सामने वाले की स्थिति को भी समझने की कोशिश करें। याद रखिए कि पति-पत्नी एक होंगे तो तमाम समस्याओं का निराकरण अपने आप है बिना किसी झगड़े के निकल आएगा। अगर संयुक्त परिवार में रहते हैं और दिन में एक दूसरे के बीच कहासुनी हो जाती है और उस स्मय चर्चा का समय नहीं मिलता तो बेडरूम में चर्चा करें, झगड़ा नहीं। चर्चा कर के एक-दूसरे को समझने का प्रयत्न करें और जितना समझ जाएँगी, उतनी जल्दी समस्या हल हो जाएगी। 

बेडरूम एटिकेट्स (शिष्टाचार) भी ज़रूरी है

बात सुन कर थोड़ी हँसी आएगी, पर यह बात सच है कि बेडरूम एटिकेट्स (शिष्टाचार) हमारे अंदर होना ज़रूरी है। यहाँ बात बेडरूम को व्यवस्थित रखने की नहीं है। उसे तो ज़्यादातर महिलाएँ रखती ही हैं। अपना कमरा साफ़ हो, यह इच्छा हर महिला की होती है और समय मिलते ही महिला अपना कमरा साफ़ कर भी लेती है। पर बात यह है कि बेडरूम के अंदर पति-पत्नी कैसे रहते हैं। साधारण उदाहरण से जानते हैं। कुछ कपल्स (जोड़े) ऐसे भी होते हैं कि जिनके बीच दिन-रात झगड़ा होता रहता है। विवाह के बाद शुरूआत में तो ये झगड़े जल्दी सुलझ जाते हैं, पर विवाह के कुछ समय बाद रात को भी नहीं सुलझते। कभी ऐसा भी होता है कि दिन के झगड़े के बाद रात को पति-पत्नी अपने कमरे में भी बात नहीं करते। झगड़े को हल किए बिना ही मुँह घुमा कर सो जाते हैं। इस तरह मुँह घुमा कर सो जाने के कारण मामला सुलझने के बजाय अधिक उलझ जाता है। विवाह के कुछ समय बाद यह समस्या दिनों-दिन बढ़ती जाती है। विवाह के तुरंत बाद तो झगड़े तुरंत साल्व हो (सुलट) जाते हैं, पर कुछ दिनों बाद दिन में होने वाला झगड़ा पूरी रात बेडरूम में भी रहता है और कभी-कभी तो यह अनबन दो से तीन दिनों तक बनी रहने के कारण पति-पत्नी अपने ही बेडरूम में मेहमान बन कर रहते हैं। बात यह है कि दिन में भले लड़े-झगड़ें, पर रात को बेडरूम में हर तरह की अनबन को हल कर लेना चाहिए। क्योंकि ऐसा होता है कि विवाह के अमुक समय बाद झगड़े हल नहीं होते? क्योंकि हम बेडरूम में झगड़ा न करने का एटिकेट्स (शिष्टाचार) का पालन नहीं कर सकते? इसका जवाब है इगो (अहंकार)। 

प्यार और सम्मान 

बेडरूम एटिकेट्स (शिष्टाचार) की सब से बड़ी शर्त प्यार और सम्मान है। हर झगड़े के बाद हमेशा इस तरह का आग्रह रखें कि सोने से पहले एकदूसरे से नाराज़ होकर नहीं सोएँगे। समस्या को हल कर के, शान्ति से बात कर के ही सोएँगे। दोनों ही प्रेम से आलिंगन कर के सोएँ। आलिंगन सब से बेस्ट मेडिसिन है। नाराज़ व्यक्ति को प्यार से आलिंगन मिलेगा तो आधा ग़ुस्सा तो अपने आप ही शांत हो जाएगा। यहाँ महिला-पुरुष दोनों की बात हो रही है। दोनों अपनी परेशानी के बारे में बता कर मामले के बारे में साल्युशन निकालने का प्रयास कर के ही सोएं। किसी भी झगड़े के बाद कभी भी पुरानी बातें न याद करें। जो भी दलील हो लाॅजिकल (तर्कपूर्ण) होनी चाहिए। बेकार की बातें कर के अनबन नहीं करनी चाहिए। इस अनबन से तबीयत और सम्बन्ध बिगाड़ने के अलावा और कुछ नहीं मिलता। 

ईगो (अहंकार) को किनारे करें

पति-पत्नी के बीच तमाम झगड़े का मूल ईगो (अहंकार) और नासमझी ही होती है। जब कोई पार्टनर की तकलीफ़ समझ नहीं पाता तो उनके बीच अनबन होने की शुरूआत हो जाती है। इस नासमझी के पीछे ईगो (अहंकार) ही ज़िम्मेदार होता है। मैं क्यों पहले सॉरी कहूँ का ईगो, मैं ही सही या सच हूँ का ईगो, पहल हमेशा मैं ही करूँ का ईगो, जो ग़लत हो वह सॉरी कहे का ईगो, इस तरह के अनेक ईगो के कारण बेडरूम एटिकेट्स का पालन नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप झगड़े को और हवा मिलती है। जिससे बड़ा रूप धारण कर सकता है। कभी-कभी तो कपल्स के बीच मनभेद की खाई बड़ी होने का कारण यही होता है। जितना ही ईगो को बड़ा किया जाएगा, वह उतना ही घातक होता जाएगा। आख़िर अपने ही आदमी के लिए किस बात का ईगो? इस बात को ध्यान में रख कर समझदारी से काम लेना चाहिए। 

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