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माँ-बाप को बच्चे से प्यार करना चाहिए उसके रिज़ल्ट से नहीं

“करन क्या रहे हो? परीक्षा से एक दिन पहले पढ़ाई करना चाहिए कि तुम फोटोस्टेट कराने जा रहे हो? और हाँ, अगर इस बार पास नहीं हुए तो ठीक नहीं होगा। दुकान पर बैठना पड़ेगा . . . चलो बैठ कर पढ़ाई करो।”

करन अपने पिता केशवलाल से बहुत डरता था। पहले क्लास से ही करन अपने पापा और परीक्षा दोनों से बहुत डरता रहा था। परीक्षा में पास होने पर ही पापा प्यार करते थे। प्यार यानी दुलार नहीं, मारते नहीं थे और पाकेटमनी देते थे। एकाध नया पेन और कपड़ा दिला देते थे। करन के लिए यही पापा का प्यार था। मम्मी दुलारती, पर पढ़ाई के लिए कहती, “बेटा मेहनत कर के पढ़ो तो।”

करन की समझ में नहीं आता था कि पास होने से क्या होता है? पंछी को पंख मिले? कोयल को आवाज़? या पापा के बढ़ई के काम करने वाले औज़ार काम करने के लिए मिलें? करन को पढ़ाई के अलावा बाक़ी के सारे काम अच्छे लगते थे। वह पापा के औज़ार पा जाता तो लकड़ी के टुकड़े को बढ़िया कलाकृति में ढाल देता। उसे पापा की तरह बढ़ई बनना अच्छा लगता था। पर पापा बिलकुल नहीं चाहते थे। वह तो करन को साहब बनाना चाहते थे। दुकान पर बैठ कर सोफ़ा या टेबल बनाने वाला अपनी तरह साधारण मिस्त्री नहीं। भले ही कमाई अच्छी हो, पर समाज में इज़्ज़त नहीं थी। कोई इज़्ज़त से नहीं देखता था। सभी काम में ग़लतियाँ देखते थे। 

जबकि करन को अपने पिता के बढ़ई के काम में एक अलग ही छटा नज़र आती थी। उसकी फ़िनिशिंग बहुत अच्छी थी। उसके पापा कोई लकड़ी का टुकड़ा बेकार समझ कर फेंक देते तो वह उस टुकड़े से कुछ बना कर अपने किसी दोस्त को उपहार में देता तो उसका वह दोस्त ही नहीं, दोस्त के माँ-बाप भी ख़ुश हो जाते। यह कला करन के ख़ून में थी। छोटी बहन के लिए गाड़ी और गुड़िया बनाता तो बहन के साथ वह भी उतना ही ख़ुश होता। 

पर करन आजकल दुखी था। बोर्ड की परीक्षा नज़दीक थी, जिसमें वह पास होगा या नहीं, इस बात की उसे बड़ी चिंता थी। कुछ याद भी नहीं हो रहा था और जो याद होता था, वह याद ही नहीं रह पाता था। वह मम्मी से भी कुछ नहीं कह सकता था। क्योंकि मम्मी भी करन पास हो जाए, इसके लिए उपवास के साथ मानता मानने में लगी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? 

करन ने फोटोस्टेट कराने की बात की तो पापा ग़ुस्सा हो गए। फिर भी करन फोटोस्टेट कराने गया। अगले दिन मम्मी ने दही खिला कर परीक्षा देने के लिए भेजा। दो घंटे बाद स्कूल से फोन आया कि करन नक़ल करते हुए पकड़ा गया है। पूरी माइक्रो फोटोस्टेट ले कर आया था। घर वालों को उसे ले जाने के लिए बुलाया गया था। क्योंकि उसे परीक्षा कक्ष से बाहर किया गया तो उसने तीसरे महले से कूद कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। 

“करन फोटोस्टेट करा कर साथ ले गया? कब उसने यह सब सोचा और किया? माँ हो कर तुम जान नहीं सकी?” करन के पिता केशव ने करन की मम्मी को टोका तो वह बेचारी रोने लगी। पति-पत्नी स्कूल पहुँचे। स्कूल के प्रिंसिपल रघुनाथजी ने उन्हें प्यार से बैठा कर कहा, “करन होशियार लड़का है। उसे लकड़ी की बहुत अच्छी कारीगरी आती है, यह तो मुझे आज पता चला।”

“कारीगर बनाने के लिए के लिए इतने महँगे स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं एडमिशन कराया साहब,” केशव ने कहा। 

रघुनाथजी ने पानी का गिलास उनकी ओर बढ़ाते हुए शान्ति से कहा, “आप का करन चोर नहीं है। बस, थोड़ा घबराया हुआ है परीक्षा से। वह आप से डरा हुआ है फ़ेल हो जाने के लिए।”

“मेरा? मेरा डर होता तो वह इस तरह का ग़लत काम . . . ” केशव का ग़ुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। यह देख कर रघुनाथजी ने करन से कहा, “बेटा, तुम बाहर मीना टीचर के पास बैठ कर कल की परीक्षा के बारे में समझ लो।”

इसके बाद रघुनाथजी ने केशव से कहा, “करन तो नादान है, पर आप तो नादान नहीं हैं।”

केशव ने आश्चर्य से रघुनाथजी को देखते हुए कहा, “आप को करन को सज़ा देनी चाहिए। इसके लिए मैं आप से कुछ नहीं कहूँगा।”

रघुनाथजी ने कहा, “सज़ा तो मिलेगी, पर पहले यह तो तय करो कि अपराधी कौन है?” 

केशव हैरान हुआ, “साहब, मेरा बेटा बेवुक़ूफ़ है। गधे ने पर्ची ला कर मेरा नाम डुबोया है। अब आप मुझे घुमा रहे हो। आप को जो करना है, कीजिए। अब मैं घर जाऊँगा।”

“घर जा कर आप क्या करेंगे?” 

प्रिंसिपल अपना सवाल पूरा करते, उसके पहले ही केशव बोल पड़ा, “इसे ऐसा सबक़ सिखाऊँगा कि वह फिर कभी इस तरह की चोरी करने की हिम्मत नहीं करेगा। पढ़ने के अलावा दूसरी कोई बात नहीं करेगा।”

अब प्रिंसिपल खड़े हो गए, “तुम्हारी समझ को क्या हुआ है भाई? बेटा आत्महत्या करने की कोशिश कर रहा है और तुम उसे मारने की बात कर रहे हो? वह एक सुंदर कलाकार बन सकता है, यह तुम्हें दिखाई नहीं देता। यह तुम्हारी दबंगई से पास होने के लिए चोरी करने के लिए मजबूर हो सकता है, यह तुम्हें दिखाई नहीं देता? उसे पढ़ने में रुचि कम है और उसका कलाकार जीव कुछ नया करने के लिए बेचैन हो रहा है, वह छटपटा रहा है। उसे इसकी मर्ज़ी से जीने दो। उसे थोड़ा समय दो, वह पढ़ेगा। वह भले ही डॉक्टर न बने, पर एक अच्छा कलाकार बन कर तुम्हारा नाम रोशन करेगा।”

“पर मैं तो इसके अच्छे के लिए . . .” केशव की बात पूरी होती, उसके पहले ही उसकी पत्नी ने उसे रोक कर कहा, “साहब, ठीक कह रहे हैं। आप बेटे को बहुत दबाव में रखते हैं। वह आप को देख कर काँपने लगता है। बोल नहीं पाता आप के सामने।”

“यही तो मैं भी कह रहा हूँ,” प्रिंसिपल ने समझाया, “बेटे को प्यार से समझाओ कि पढ़ाई महत्त्वपूर्ण है। पर तुम्हें जो करना हो, वह पास हो कर करना। मेरे लिए तुम प्यारे हो, मार्क्स नहीं।”

थोड़ा समझाने पर सारी बात केशव की समझ में आ गई। चलते समय उसने जिस तरह करन के कंधे पर हाथ रखा, यह देख कर लगा कि अब करन का भविष्य उज्जवल है। परीक्षा नज़दीक हो तो बच्चों पर दबाव नहीं बनाना चाहिए। बस, स्नेह से साथ रह कर विश्वास दिलाएँ कि ‘हम तुम्हें प्यार करते हैं, तुम्हारे रिज़ल्ट से नहीं। मेहनत करनी चाहिए, चिंता नहीं।’ अगर ऐसा हो जाए तो हज़ारों आत्महत्याएँ होने से रुक सकती हैं। 

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