नशा एक अभिशाप
काव्य साहित्य | कविता सीमा रंगा ‘इन्द्रा’1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तेरा जीवन तेरा है, बस भेंट चढ़ाओ क्यों तुम।
लिया नशा जीवन में तूने, हो जाओगे गुम
हो जाएगा काला तेरा, सारा ही तो जीवन।
पीकर हिलता हरदम इसको, कहाँ रहेगा यौवन॥
छिन जाएगा तेरा सब कुछ, भटके तेरे बच्चे
मिल जाएगी सज़ा इन्हें भी, घड़े अभी हैं कच्चे
खा जाएगी मदिरा तुझको, इसे नहीं जो छोड़ा
लुट जाएगा सारा तेरा, धन जो तूने जोड़ा।
अपने कुनबे से करता है, प्यार अगर तू इतना।
छोड़ नशे को आज, दिखा दे प्यार करे तू कितना
ख़ुश हो जाएँ बच्चे तेरे, फिर क्यों होगा छिपना।
पैसे होंगे तेरे सारे, फिर तू उनको गिनना
किलकारी गूँजेगी तेरे घर में होंगी ख़ुशियाँ
प्यार प्रेम की बातें होंगी, सुखी होंगी नदियाँ
देख सुखी बसते घर को, माँ ख़ुश हो जाएगी।
घरवाली पकवान बना दे, ख़ुश हो गाएगी।
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