अपना सब कुछ छोड़ रहा है
शायरी | ग़ज़ल अविनाश भारती1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
अपना सब कुछ छोड़ रहा है,
घर का राशन जोड़ रहा है।
कहते वालिद-अब्बा जिसको,
कितना ख़ुद को तोड़ रहा है।
ख़ून-पसीना हर पैसा में,
सबकी क़िस्मत जोड़ रहा है।
लाख कमाता बेटा फिर भी,
अपना गुल्लक फोड़ रहा है।
जब से बैठे पापा घर में,
बेटा भी मुँह मोड़ रहा है।
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