उठना होगा चलना होगा
शायरी | ग़ज़ल अविनाश भारती1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
उठना होगा चलना होगा,
तो ही पूरा सपना होगा।
दुश्मन तेरा तगड़ा रण में,
ख़ुद से, ख़ुद ही लड़ना होगा।
कुंदन जैसा बनना है तो,
ताप अनल का सहना होगा।
दस्तूर ग़ज़ल का कहता है,
सच को सच ही कहना होगा।
मिट्टी, धूल, पसीना हरदम,
मेहनतकश का गहना होगा।
सुन लो ‘अविना’ ज़माने में,
हर दिन जीना- मरना होगा।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
ग़ज़ल
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं