बेटियाँ
काव्य साहित्य | कविता दीपिन्ति कटारिया15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
कौन देखे आँसू मेरे,
माई री! मैं तो मुँह छुपा कर रोयी हूँ।
एक बार तूने कहा था मुझे,
लड़की हो, बड़ी भाग्यवान हो
झूठ था माई, देख आज मैं
अपने ही जन्म पर लजाई हूँ।
माई री! तू तो कहती थी बचपन में मुझे
बेटियाँ देवी का रूप होती हैं।
वो लक्ष्मी होती हैं,
सरस्वती होती हैं,
अन्नपूर्णा होतीं हैं,
दुर्गा होती हैं,
काली होती हैं।
पर, कभी तूने ये नहीं बताया माई री!
कि वो बीच बाज़ार शर्मसार भी होती हैं।
बेटियाँ सड़कों पर निर्वस्त्र जहाँ घुमाई जाती हैं,
माई री, वहाँ कौन सी देवी पूजी जाती है?
तूने मुझे झूठ क्यूँ सिखाया माई
कि बेटियाँ देश की लाज होती है।
बलात्कार कर सड़कों पर फेंकी जाती हैं,
भीड़ में नग्न घुमाई जाती हैं।
कभी तूने बताया नहीं माई कि
सोशल मीडिया के पन्ने पर बने बटन से,
बेटियों की इज़्ज़त भी
लाइक और शेयर की जाती है।
निर्वस्त्र खड़ी बेबस दो बेटियाँ,
देखने जुटी हज़ारों की भीड़ है।
किससे आस लगाऊँ यहाँ
कोई कृष्ण नहीं, माई देख ये तो
दुर्योधन और दुःशासन की भीड़ है।
सरकारें कुर्सी पर बैठी रहती,
नियम-क़ानून सब बन्दी हैं,
यहाँ राजा धृतराष्ट्र है
सत्य कहने की पाबंदी है।
सच तो ये है माई री,
द्रौपदी के जैसे हम आज भी
सभा के बीच लज्जित की जाती हैं,
तो अब तुम झूठ ना कहो माई कि
हम देवियों-सी पूजी जाती हैं।
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