बुनियाद
काव्य साहित्य | कविता भूपेंद्र सिंह15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
वक़्त की करवटों ने उलझा सा दिया हूँ,
ख़ामोशी की गिरफ़्त में पगला सा गया हूँ,
सिसकियों भरी रातों में पानी भी बेमूल्य,
भावनाओं के आग़ोश में ठहर सा गया हूँ।
दरख़्तों के साये में बुनियाद अपने कुदरने लगे,
अपनी जड़ें देख भूपेंद्र शामियाने तेरे दरकने लगे।
अकेला नहीं है जनाब किताबें तेरी साथी है,
बन कलाम तू क़लम चला, शब्द तेरे दहकने लगे।
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