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छतरी

“बहुत बहुत शुभकामनाएँ मधुप जी! इतना ऊँचा और आलीशान होटल बनाया है। इतना भव्य उद्घाटन समारोह! बधाई हो। हनुधन नाम की इस पहाड़ी आस-पास कोई बड़ा होटल नहीं था, अब पर्यटकों को लाभ होगा,” पड़ोस में बने एक छोटे ढाबे के मालिक ने कहा। 

“हाँ, लाभ तो होगा ही। दिखा दूँगा दुनिया को कि मैं क्या चीज़ हूँ,” एक गर्वीली मुस्कान मधुप के चेहरे पर तैर गई। 

“आइए जजमान! मुहूर्त निकला जा रहा है। हवन में बैठ जाइए। मुझे एक रेस्टोरेंट का मुहूर्त भी आज ही करवाना है,” पंडित जी ने आवाज़ लगाई। 

“अजी रुकिए पंडित जी, आ रहा हूँ। अब तो यहाँ पर होटलों की लाइन लगा दूँगा। आस-पास कोई ढाबा, रेस्टोरेंट कुछ नहीं बचेगा। सब ख़ुद ब ख़ुद ख़त्म हो जाएँगे। बस आप होटल्स के उद्घाटन और पूजा-पाठ की आदत डाल लो,” मधुप ने अट्टाहस लगाया। 

“ईश्वर के छतरी सबके सिर पर विद्यमान रहे। यही प्रार्थना है मेरी। चलिए शुरू करते हैं,” पंडित जी ने कार्यक्रम का श्रीगणेश किया। 

मुख्य द्वार की पूजा के लिए सब बाहर पहुँचे। हनुधन नाम की पहाड़ी पर अचानक भूस्खलन हुआ। खुले आसमान की छतरी के नीचे होने से किसी के प्राणों को कोई हानि नहीं हुई। होटल में बड़ी सी दरार आ गई थी। उसे देख सबने आस-पास के ढाबों पर दृष्टि डाली। वे आसमानी छतरी में सुरक्षित खड़े थे। 

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