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संयोग

“सुनो! मैं सोच रहा हूँ कि बड़की का रिश्ता उस टटपूँजिए से तोड़ दूँ,” गोपाल ने अख़बार में रिश्ते वाले पेज से नज़र हटाकर चश्मा उतारते हुए पत्नी के चेहरे पर जमा दी। 

“लेकिन क्यों जी! इतना अच्छा तो लड़का है। घर भी बहुत अच्छा है। कमाता भी ठीक-ठाक है। सब बातें ठीक हैं। अगले महीने शादी है। फिर अचानक क्यों?” कल्याणी गोपाल के इस अटपटे प्रस्ताव से भौचक रह गई थी। 

“अरे! तुम समझती नहीं हो। तब हमारे पास पैसे नहीं थे। अब तो ये दस लाख की लॉटरी निकली है ना, तो हम कोई अच्छा लड़का ढूँढ़ लेंगे। छुटकी का रिश्ता तो पहले ही अच्छे घर में तय है,” गोपाल अपने मंतव्य में दृढ़ था। 

“यह तो संयोग से हुआ है। लॉटरी बड़की की शादी के बाद निकलती तो?” एक आह भरते हुए बस इतना ही कह पाई कल्याणी। इससे अधिक की उसकी औक़ात नहीं थी। 

तभी फोन की घंटी बजी। कल्याणी ने फोन उठाया। रिसीवर के उस ओर से छुटकी की सड़क दुर्घटना की ख़बर मिली। कल्याणी का कलेजा मुँह को आ गया। वह ख़बर सुनकर पथरा गई। किसी अस्पताल से डॉक्टर का फोन था। बताया कि तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा। शायद एक ही आँख बचा पाएँ। 

गोपाल को भयंकर सदमा हुआ। दोनों पति-पत्नी जल्दी-जल्दी घर से निकल रहे थे कि फिर से फोन झनझना उठा। 

उफ़! अब कौन? परेशान गोपाल ने फोन उठाया। 

“जी, गोपाल जी! हम अपने लड़के का विवाह आपकी छुटकी से तोड़ते हैं,” उधर से आवाज़ आई। 

“शर्मा जी इस समय ऐसी बातें न कीजिए। हम पहले ही बहुत परेशान हैं। छुटकी अस्पताल में है,” गोपाल लगभग गिड़गिड़ाने लगे। 

“आप समझिए गोपाल जी! हमें अपने लड़के के लिए कानी लड़की नहीं चाहिए,” फोन कट चुका था। 

“यही एक्सीडेंट अगर शादी के बाद हुआ होता तो?” रिसीवर पकड़कर चिल्ला रहे थे गोपाल। 

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी पाण्डेय 2023/01/15 06:35 AM

नहले पर दहला ,क्यि ख़ूब

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