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छोटी चिड़िया–02

कोरोना के वक़्त दुनिया हादसों के दौर से गुज़र रही थी। उन दिनों छोटी चिड़िया का मन बहुत व्यथित रहता था। हो न हो बाहर के वातावरण ने मन की पीड़ा को और गहन कर दिया। वह व्याकुल हो वेदना के गीत गाती हुई बहुत दूर निकल गई और एक वृक्ष की सघन छाया में सुस्ताती हुई बड़ी देर तक गाती रही। उसकी पीड़ा का स्वर दूर दूर तक घाटियों में गूँज रहा था। उसके मित्रों ने उसके मर्मस्पर्शी गीत को सुन उसकी वाह-वाही की क्योंकि शब्द बहुत अंदर के अंधकार को चीरते हुए आ रहे थे और हृदय में टीस दे रहे थे। उसने गीत गाते वक़्त इस बात को भुला दिया था कि गुलाब काँटों के बीच रह कर भी मुस्कुराता है इसीलिए सबका प्रिय है। उसी वक़्त चिड़िया के एक मित्र ने उसे समझाया कि उसे ख़ुशी के गीत गाने चाहिएँ जिससे कि उदास व्यक्तियों को भी दुनिया इंद्रधनुषी लगे। मित्र की बात पर चिंतन मनन करते करते वह उड़ान भरने लगी। 

उसी वक़्त उसे नीले आकाश में घने काले काले मतवाले बादल भागते हुए दिखायी दिए। बादलों को देखकर उसने उनसे पूछा, “तुममें जीवन है फिर भी तुम इतना क्यों बरसते हो कि दुनिया में त्राहि-त्राहि मच जाय और लोग दुख में डूब जाएँ?” 

बादल को बरसने की बहुत जल्दी थी और वह अफ़रा-तफ़री आगे निकल गया। 

फिर चिड़िया सागर के पास पहुँची और उसने सागर से पूछा कि “तुम्हारे तटों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है फिर तुममें तबाही का आलम क्यों होता है?” 

परन्तु सागर उस वक़्त ख़ामोश था, बहुत ख़ामोश . . . उसका तट सूना था, सैलानी रहित। 

फिर चिड़िया ने देखा शाम ढल रही थी . . . सूरज को समुद्र में डूबते देख चिड़िया ने उससे पूछा कि “तुम्हारा उगना सारी दुनिया को अच्छा लगता है फिर तुम डूबते क्यों हो?” 

सूरज को भी घर जाने की जल्दी थी, अतएव उसने भी चिड़िया के प्रश्न का जवाब देना उचित नहीं समझा और डूब गया। 

अब चिड़िया सूरज से कोई जवाब न पाकर ज़ोर-ज़ोर से चहचहाती हुई पृथ्वी से पूछा कि “तुम भूकंप क्यों लाती हो, बोलो? 

पृथ्वी से भी उसे कोई जवाब नहीं मिला वह भी अपनी धुरी पर घूम रही थी और अत्यधिक व्यस्त थी, वह भी निशब्द थी। 

चिड़िया को भी घर लौटने की जल्दी थी; दिन डूब रहा था और रात पूरी दुनिया में अपने साम्राज्य का जलवा दिखाने में व्यस्त। रात को आते देखकर चिड़िया ने उससे पूछा, “तुम क्यों आ रही हो उदासी लेकर? क्या तुम पूरी दुनिया को उदास देखना चाहती हो? उजाले को अँधेरे में बदलना चाहती हो?” 

छोटी चिड़िया का यह सवाल सुन रात मुस्कुराने लगी और बड़े ही स्नेह से उसे बताया कि रात-दिन, दुख-सुख, अँधेरा-उजाला जीवन के पक्ष हैं। हर रात के बाद दिन आने पर ख़ुशी का अहसास और महत्त्व दोनों बढ़ जाता है और रात हौले-हौले मुस्कुराने लगी . . . अब छोटी चिड़िया को उसका उत्तर मिल चुका था, वह ख़ुश हो उठी और चहचहाती हुई अपने घोंसले की ओर उड़ान भरने लगी। 

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