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छोटी चिड़िया–04


(वक़्त जुलाई 2020) 

 

उस दिन सुबह सुबह सूर्य की लालिमा देखकर चिड़िया अपने बच्चों के साथ घोंसले से बाहर निकल आयी थी, वह और उसके बच्चे बहुत ख़ुश लग रहे थे। उसके बच्चे चिड़िया के आसपास चहचहाते हुए दाना चुग रहे थे। चिड़िया के बच्चे बहुत स्वावलंबी थे यह सोच कर चिड़िया फिर से प्रसन्न हो उठी कि उसकी अनुपस्थिति में भी वे स्वतः अपना कार्य कर लेते थे। ऐसा सोचते-सोचते चिड़िया के मन में अचानक ख़्याल आया कि वह क्यों न मानव जाति के बच्चों की ख़बर ले आए; कोरोना के कारण बच्चे घर में क़ैद थे। बच्चों के बिना बाग़ बग़ीचे, स्कूल सभी सूने हो गए थे। ऐसा सोचते-सोचते वह उदासी से भर गई कि जिन बच्चों के अपने माँ बाप नहीं थे वे उस वक़्त कैसे होंगे? अतएव उसने सोचा कि उसे ऐसे बच्चों का पता लगाना चाहिए। सभी माँयें अपने-अपने बच्चों का विशेष ख़्याल रख रही थीं लेकिन जिनका इस दुनियाँ में कोई नहीं था उनका उन दिनों कौन ध्यान रखता होगा? इस कार्य के लिए उसे अपने बच्चों को घोंसले में ही छोड़ना पड़ा और वह सुहाना मौसम देख अनंत आकाश में उड़ान भरने लगी। 

यह सब सोचते-सोचते वह बहुत दूर निकल आयी। इस वक़्त वह एक महानगर के ऊपर से उड़ान भर रही थी, यह भारत देश की राजधानी दिल्ली थी। उसे दूर से ही लाल क़िला दिखायी दे रहा था। यहाँ का नज़ारा कुछ और ही था। बहुत ख़ूबसूरती बिख़री हुई थी, सड़के साफ़-सुथरी, कोलाहल रहित थीं, पेड़ पौधे हवा के संसर्ग से झूम रहे थे। उस वक़्त पुनः उसे उसके बच्चे याद आने लगे। वह सोच रही थी कि वह उन्हें अक्षरधाम और लाल क़िला दिखा सकती थी लेकिन वे अभी बहुत छोटे थे यह सोचकर उसने अपने मन को तसल्ली दी। लंबी दूरी के कारण वे थक जाते क्योंकि चिड़िया स्वयं थक कर चूर-चूर हो चुकी थी। वह नीचे आकर पास के एक नर्सरी में पानी पीने लगी, उसे अब जान में जान आई और बच्चों से मिलने की उत्कंठा से उसका मन बाग़-बाग़ हो उठा। उसने नीले आसमान पर नज़र ड़ाली, दूर-दूर तक रंग बिरंगी पतंगों को देखकर उसका मन भी उमंग से भर उठा। 

उड़ते उड़ते उसकी नज़र हरियाली और बाग़ बग़ीचों पर पड़ी, जहाँ सुंदर-सुंदर भवन थे, बच्चों के स्कूल थे लेकिन उनके झूले ख़ाली पड़े हुए थे, पेड़ों पर आम लगे हुए थे। पास में ही सामने की ओर एक उद्यान था जो बहुत ख़ूबसूरत था जिसमें लगभग सभी तरह के बेहतरीन गुलाबों की क़तारें थीं जो अपनी आज़ादी और ख़ुशियों का इज़हार कर रही थीं। ऐसा लगता था मानों उधर से गुज़रने वाले व्यक्ति का मन मोह लें और पल भर में उन्हें अपना बना लें और वह उन गुलाबों के काँटों की पर परवाह किये बिना उनको अपनाने के लिए सहर्ष ही तैयार हो जाए। छोटी चिड़िया स्वयं भी बहुत प्रभावित हो चुकी थी। वहाँ सिक्योरिटी गार्ड तैनात थे। उसने सोचा कि उसे वहाँ चलाकर देखना चाहिए। अतएव वह उड़ कर एक पलाश के पेड़ पर बैठ गयी और ख़ुशी से चहचहाने लगी। 

वहाँ से उसे उद्यान में काम करने वाली महिलाएँ और बच्चे दिखायी दिये। बच्चों को देखकर वह पेड़ से उतर कर नीचे आ गयी और फुदकते-फुदकते उद्यान के मुख्य द्वार से कमरे के अंदर दाख़िल हो गयी। कमरे के अंदर उसने छोटे-छोटे सुंदर बच्चों को पालने में देखा। ये बच्चे अभी जल्दी ही उद्यान में आये थे। उन्हें देखते ही वह फिर से चहचहाने लगी। वे बच्चे पालने में मुस्कुरा रहे थे। कुछ बड़े बच्चे गेम खेल रहे थे एवं कुछ पढ़ रहे थे। सभी बच्चे आज बहुत प्रसन्न दिखायी दे रहे थे। यहाँ उद्यान में उनकी देखभाल के लिए बहुत से लोग रक्खे गए थे। पिछले दिनों कुछ बच्चे कोरोना से संक्रमित हो गए थे। ये सभी बच्चे अनाथ थे, उद्यान ही इनका परिवार था। यह सब सोचकर चिड़िया थोड़ी उदास हुई लेकिन अगले ही पल बच्चों को प्रसन्न देखकर वह भी प्रसन्न हो उठी, उसने सोचा कि उसे वे बच्चे मिल गए जिनकी उसे तलाश थी। 

अभी वह यह सोच ही रही थी कि बाहर गाड़ी रुकने की आवाज़ से सतर्क हो उठी। उसने देखा एक महिला मुस्कुराती हुई ऑफ़िस के अंदर दाख़िल हुई। मास्क के कारण उनका चेहरा स्पष्ट नहीं दिखायी दे रहा था। वह लंबी, दुबली पतली सुंदर, स्मार्ट, सौम्य और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थीं। उनके ख़ूबसूरत से हाथों में एक बहुत ख़ूबसूरत सा गुलाब का बुके था जिसको उद्यान का माली अभी-अभी उनको दे गया था। इनको सभी मालिनी मैडम ही कह रहे थे। मालिनी जी ने स्वयं इस बुके को मेज़ पर रक्खे फ़्लॉवर पाॅट में अपने हाथों से लगा दिया। आज उद्यान के सबसे नन्हे-मुन्ने बच्चे का जन्मदिन था। उस नन्ही-सी जान जिसका नाम उल्लास था के लिए वह अपने साथ केक, कपड़े और रंग बिरंगे खिलौने लेकर आयीं थीं। बच्चा उनको देखकर किलकारी भर रहा था। इधर कुछ समय से . . . उल्लास के आने से उद्यान में और भी चहल-पहल बढ़ गयी थी। मालिनी जी जो उद्यान की डिप्टी डायरेक्टर थीं केक कटवा रही थीं। तालियों की गड़गड़ाहट और हैप्पी बर्थडे . . . की ध्वनि में मैडम मालिनी पूरी तरह से डूब गयी थीं मानों वह भी अपने बचपन के बारे में सोच रही हों। उल्लास के साथ उद्यान में उपस्थित सभी बच्चों और स्टाॅफ की तस्वीरें (केक काटते वक़्त) की मोबाइल में लगातार क़ैद हो रही थीं। उद्यान की सुरभि वीडियो बनाने में तल्लीन थी। इसकी कवरेज भी कल के कतिपय समाचार पत्रों में आने वाली है। मालिनी जी को आज की बहुत सी फ़ाइलें निपटानी थी अतएव उन्होंने उल्लास को दूध की बाॅटल आज अपने हाथों से उसके मुँह में लगाकर तेज़ क़दमों से अपने ऑफ़िस की ओर बढ़ गयीं और फ़ाइलों में डूब गयीं। उन्हें आज का काम आज ही निपटा लेना था। मालिनी जी बहुत मेहनती और समय की पाबंद हैं। कोरोना के वक़्त भी इन्होंने कभी भी अवकाश नहीं लिया और बच्चों की देखभाल बड़े ही धैर्यपूर्वक की। चिड़िया यह सब देखकर ख़ुशी-ख़ुशी उद्यान से चहचहाती हुई कमरे से बाहर निकल आयी क्योंकि इन बच्चों को देखकर उसे अपने बच्चों की याद आ गई। बह बहुत संतुष्ट मन से नीले-नीले आकाश में उड़ान भरती हुई अपने घोंसले की ओर अग्रसर हो गई। 
 

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