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छोटी चिड़िया–05

 

(22 जुलाई, 2020)

 

उस दिन छोटी चिड़िया सबेरे-सबेरे सूरज के आँखें खोलने से पहले ही उड़ते-उड़ते खेतों-खलिहानों को पार करती हुई वाराणसी के गंगाजी के अस्सी घाट पर जा पहुँची। उस वक़्त आरती हो रही थी, शंख की गूँज उसके कानों में पड़ रही थी। उसने गंगा के स्वच्छ जल में अपना मुखड़ा देखा और जल को स्पर्श कर सुखद अनुभव करने लगी। जल की बीच धारा में नौका चल रही थी। लहरें आनंदित होकर अठखेलियाँ कर रहीं थीं।

वह मंदिर प्रांगण के पास ही सुकून से ठहर गयी। उसे दूर से सूरज भी आता हुआ दिखायी दे रहा था और झुंड के झुंड पक्षीगण अपने-अपने घोंसलों से निकल जोख़िम उठाने के लिए चल पड़े थे। वातावरण जितना मनोरम था ख़तरे भी उतने ही फिर भी बहुत शान्ति का पहर था। चारों तरफ़ चंदन का टीका दिये हुए पंडित जी पूजा में संलग्न थे। आरती के बाद चिड़िया विश्वनाथ मंदिर में भोले नाथ का दर्शन करने पहुँच गयी। उसे लगा कि मनुष्य की तरह उसे भी अपने पापों के प्रायश्चित हेतु ईश्वर के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिए। सबेरे-सबेरे यहाँ उसे बहुत अच्छा लग रहा था। भगवान का आशीर्वाद लेकर उसने सोचा कि उसे इस नगरी के बारे में जानना चाहिए।

वह उड़ते-उड़ते शहर को पार करते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में पहुँच गयी। वहाँ चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली बिख़री थी। तभी उसके कानों में मोर की ध्वनि पड़ी, कोयल भी मधुर-मधुर गीत गा रही थी। सावन के माह में उसने देखा बहुत से लोग यहाँ भी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने जा रहे थे वह भी उड़ते-उड़ते पहुँची और उसने भी दर्शन किया। इतने बड़े परिसर में वह टहलती रही और हरियाली का आनंद उठाती रही। फिर वह पास-पड़ोस का जायज़ा लेने लगी और एक घर के ऊपर छत पर जाकर बैठ गयी।

छत पर उसने बहुत आकर्षक और ख़ूबसूरत-सी मैडम को देखा जो कबूतरों को दाना खिला रही थीं। वह चिड़िया को देखकर बहुत ख़ुश हो उठीं और उसे भी बड़े प्यार से उन्होंने दाना फेंका। यहाँ चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली बिख़री थी। सुंदर-सुंदर पेड़-पौधे पुष्प मैडम की तरह ताज़गी से भरे हुए थे। उसने देखा पास ही कुर्सी और मेज़ थी। मेज़ पर एक डायरी जिसका पन्ना खुला था और उसमें क़लम थी। उसे लगा कि शायद यह मैडम कोई प्रोफ़ेसर और बहुत बड़ी साहित्यकार हैं। तभी उसने देखा कि वह कुर्सी पर बैठ कर लिखने में मशग़ूल हो गयीं। शायद यह कोई अपना अधूरा उपन्यास पूरा करने में तल्लीन थीं। तभी एक लड़की पानी का ग्लास ढँक कर रख गयी थी। ग्लास शीशे का था। कुछ ही देर में वह चाय भी लेकर आ गयी थी। उसने चुपचाप चाय भी मेज़ पर रख दिया और चली गयी।

लेखिका महोदया को भी कोरोना हो गया था लेकिन अपने दृढ़ निश्चय, स्वस्थ दिनचर्या के कारण इन्होंने कोरोना को पराजित कर दिया। वह इस संदेश को दुनिया के सभी लोगों तक पहुँचाना चाहती थीं। यह सब वह अपने लेखन के माध्यम से सम्भव करना चाहती थीं। चिड़िया को यह लेखिका महोदया बहुत ही भली-भली और ख़ुशनुमा लगीं। उसे लगा कि उनको देखकर ही शायद इनकी छत के सारे के सारे गुलाब खिल जाते होंगे। चिड़िया ने महसूस किया कि यहाँ कितनी शान्ति है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है। चिड़िया पास में टहलने लगी। वह सोच रही थी कि काश वह भी इनकी तरह एक बड़ी-सी लेखिका होती तो कितना सुंदर होता। वह कल्पना के संसार में गोते लगा रही थी लेकिन यहाँ सब कुछ हक़ीक़त की दुनिया थी। यह लेखिका महोदया उसे एक ऐसी नदी लगीं जो मीठे जल से आकंठ्य भरी हुई थीं। मानों इनकी वाणी में शहद घुला हो। ऐसी मधुर वाणी सुन, मीठा जल पी, ज्ञान और अनुभव की बातें सुनकर उसे लगा कि उसने सचमुच गंगा नहा लिया। उसे लगा उच्च कोटि के सानिध्य से कितना लाभ होता है। प्राणी का मन अच्छा सोचता है, अच्छा बोलता है और अच्छा बाँटता है सचमुच एक प्यारी सी जीवनप्रदायिनी नदी? यह सुंदर सा संदेश लेकर वह इस प्राचीन नगरी के ऊपर से नीले नीले अंबर में चहचहाती हुई उड़ान भरने लगी।

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