दु:ख
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कंचन लता जायसवाल29 Sep 2014
किसी समंदर से
इक पहाड़ ने कहा –
मैंने जाना कि तुम
इतने नमकीन क्यूँ हो।
तुम्हारे भीतर
मेरे भीतर का दुख
जो बह रहा है।
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