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गणतंत्र दिवस

ज़रा पता करो कि पवन में इतना वेग कहाँ से आया है, 
ज़रा पता करो मिट्टी के महक में तेज कहाँ से आया है, 
सागर की लहरें उत्तेजित होकर क्यों गगन को छूने पहुँच गईं, 
क्यों अचानक सब लोगों की नज़रें हम पर आ के रुक गईं, 
इन सब से तो यह लगता है कि कोई पावन उत्सव आया है, 
तभी प्रकृति ने निःस्वार्थ भाव से अपना कर्त्तव्य निभाया है, 
अब तो राष्ट्रगीत की ध्वनि से पूरे विश्व को जगाना चाहता हूँ, 
हे भारत माँ! तेरी चरण-धूलि का तिलक लगाना चाहता हूँ
हे भारत माँ! तेरी चरण-धूलि का तिलक लगाना चाहता हूँ। 
 
जब सुबह-सुबह उठकर मैंने आँखें उठायीं आकाश की ओर, 
तो आकर्षक-सा प्रतीत हुआ बादलों के समूह का हर एक छोर, 
जब ग़ौर से हर एक अंश समझा उस अद्भुत चित्र की बनावट का, 
तो चकित हो गया क्योंकि वह तो नक़्शा था मेरे भारत का, 
केसरिया, श्वेत और हरे रंग से उस चित्र को सजाना चाहता हूँ, 
हे भारत माँ! तेरी चरण-धूलि का तिलक लगाना चाहता हूँ, 
हे भारत माँ! तेरी चरण-धूलि का तिलक लगाना चाहता हूँ। 
 
भारत माता ने अपनी गोद में बड़े तेजस्वी लोगों को पाला था, 
जिन्होंने अपने कंधों पर पूरे देश को रख कर सम्हाला था, 
जब बारी आई भीमराव की मातृभूमि का कर्ज़ चुकाने की, 
तो उस महापुरुष ने मात्र तीन वर्ष में संविधान रच डाला था, 
सभी भारतवासियों से मैं उनका जयनाद कराना चाहता हूँ, 
हे भारत माँ! तेरी चरण-धूलि का तिलक लगाना चाहता हूँ, 
हे भारत माँ! तेरी चरण-धूलि का तिलक लगाना चाहता हूँ, 

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