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हिंदी भाषा और कविता

भाषा किसी भी देश समुदाय क्षेत्र विशेष की एक कड़ी होती है जिसके माध्यम से हम उस स्थान विशेष से अपना सम्पर्क स्थापित करते हैं। भारत अनेकता में एकता को चिह्नित करता एक देश है जिसके भिन्न-भिन्न प्रान्तों में भिन्न-भिन्न बोलियाँ बोली जाती हैं, इसलिए हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है। भारत में कुल 123 भाषायें बोली जाती हैं लेकिन संविधान में सिर्फ़ 22 भाषाओं को ही पूर्ण रूप से मान्यता मिल पायी है जिनमें उत्तर, पश्चिम, दक्षिण और पूर्वी हर क्षेत्र की अपनी एक विशेष भाषा है। आधुनिक समय में अगर देखा जाय तो अँग्रेज़ी भाषा भी भारतीय जन समुदाय का एक विशेष पर्याय बन गई है। अँग्रेज़ी का प्रयोग स्कूल कॉलेजों में पूर्ण रूप से होने लगा है। यह भी एक तरह से उचित ही है क्योंकि जैसा कि उपर्युक्त विवरण में दर्शाया गया है कि भारत विभिन्नता लिए हुए देश है इसलिए हम हर स्थान की भाषा से भली-भाँति परिचित नहीं हो सकते। उस स्थान पर अँग्रेज़ी ही एक ऐसी भाषा परिलक्षित होती है जिसके माध्यम से हम हर स्थान विशेष से अपना संपर्क स्थापित कर सकते हैं और हर स्थान का नागरिक इस भाषा को सरलता से स्वीकृति भी दे देता है। ऐसे में अँग्रेज़ी भाषा विदेशी होकर भी देश में गर्व से अपने पाँव पसार चुकी है। 

सीखना और सिखाना मनुष्य का गुण है इस प्रकार अँग्रेज़ी को सीखना सिखाना या बोलना अनुचित नहीं है किन्तु स्वावलम्बी होना अति आवश्यक है। यहाँ स्वावलम्बन शब्द का प्रयोग करना अपना एक अर्थ दर्शाता है “ख़ुद पर निर्भर” होना, अपने आज, कल और आने वाले पीढ़ियाँ को संदेश देता नज़र आता है। यही स्थिति हमारे हिंदी की है; हम अगर हिंदी पर आत्मनिर्भर होना और अँग्रेज़ी का केवल प्रयोग करना सीखें तो शायद हम हिंदी भाषा की होती हुई क्षति को रोक सकते हैं। लेकिन जब-जब हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा घोषित करने की बात होती है तो हर राज्य विशेष अपनी भाषा का परचम लहराते हुए हिंदी भाषा को अपने ऊपर थोपता हुआ महसूस करता है ख़ासकर दक्षिण भारतीय। इस प्रकार हिंदी भाषा भारतीय जनसम्पर्क में अधिक होने के बावजूद राष्ट्र भाषा का दर्जा पाने से वंचित है। 

अब बात कविता की करते हैं। कविता क्या है? कविता एक कला है जिसे सामान्य सी भाषा में कह सकते हैं, सुर, लय, छन्दों का एक समुचित रचना, जो जनमानस को अपने छोटे से संवाद से गहरा सम्बोधन देती है, एक छाप देती है, एक गहरा भाव बोध उत्पन्न कराती है। कविता का प्राबल्य तो प्राचीन काल से ही होता रहा है और इस सन्दर्भ में भारतीय हिंदी साहित्य के इतिहास में काल विशेष के अनुरूप कविताएँ भी परिवर्तित होती रहीं। जब जैसा समय उपस्थित हुआ उस स्थिति के अनुसार कविताएँ भी मुखरित होती रहीं। कभी कविताएँ राज दरबार की शोभाएँ बढ़ाती नज़र आईं, कभी किसी प्रेम वियोग से लबालब, कभी काम-क्रिया में भी विचरित होती रहीं कविताएँ। ऐसा नहीं है कि कविताएँ यहीं तक सीमित रह गयीं। एक समय ऐसा भी आया जब देश परतंत्र था; उस समय कविता एक अलग रूप में ही जन मानस के सामने प्रस्तुत हुई। जो शब्द उस कविता में ऐसे मुखरित हुए उन्होंने देश में आज़ादी की लहर फूँकने में अपना विशेष योगदान दिया। कितने वीर बलिदानियों ने इन कविताओं को सुनते सुनते देश के आज़ादी के मंसूबे भी बना लिए। यहाँ कविता का पूर्ण सहयोग रहा आज़ाद भारत का निर्माण करने में, जो आज भी प्रतिदिन नहीं तो आज़ादी के उस विशेष दिन ज़रूर लोगों के मन मस्तिष्क में अपनी छाप छोड़ देती है। इस प्रकार कविता समय-समय पर जीवित होती रही और जन मानस में नव प्राण और चेतना जगाती रही। वर्तमान समय में भी कविता का वही प्रारूप है। कविता क्या वह है जो  किसी भी लयबद्ध तरीक़े से मन के भाव परोसे, क्या वह कविता ही हो जाएगी? किन्तु सच्चे अर्थ में कविता वही है जो हमारे मानस पटल पर ज्ञान और सकारात्मक सोच का प्रवाह करे। वही सार्थक कविता है और वही रचनाकार कवि है। इस स्थिति में हमारे कवियों की उपस्थिति भी दर्ज होती रही है। ओजस्वी कवि, राष्ट्र-कवि आदि नामों से कवियों को आज भी उपाधियों से सुशोभित किया गया है। इन कवियों ने न सिर्फ़ भारतीय गौरव बढ़ाया बल्कि उन्होंने हिंदी भाषा क्षेत्र में भी कविता का एक नामचीन इतिहास तैयार किया। 

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