खड़ी वो पथ अनजान
काव्य साहित्य | कविता सुनीता गोंड1 Jul 2022 (अंक: 208, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
सूने पाँव लिए वो!
खड़ी थी पथ वीरान
पेट की भूख से थी वो
शायद अनजान।
काँधों पर टाँगें कुछ बदरंगा सामान
जिसमें कुछ काग़ज़ कुछ टूटे बिखरे अभिमान
कोख में चिपका है शिशु अनजान
मुख में थामे जो सूखे स्तनों का भार।
होता है जब उसे अस्मिता का ज्ञान
ढ़क लेती हृद्य पर दे थोड़ा आँचल का भार
आसपास के कोलाहल में
बैठी वह लिए निज एकांत।
दुःख के जीवन चक्र में नहीं उसका कोई नाम
विलुप्त हुआ है जैसे उसका सब सुख धाम
पास से गुज़रे कोई आगन्तुक धनवान
नहीं क्षोभ तनिक भी मन का यह पूर्ण सा ज्ञान।
ढूँढ़ रही है क्या?
नहीं है उसको अनुमान
हर निर्जीव जगह पर
ढूँढ़ती अपना कुछ सामान
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