इंतजार की घड़ी
काव्य साहित्य | कविता सी.आर.राजश्री1 Sep 2007
भुलाये नहीं जाते वो पल,
संग तुम्हारे थे जब हम कल।
प्यार से भरा स्पर्श का वो लम्हा,
सताते है जब रहते है हम तन्हा।
याद तुम आते हो बहुत मुझे
पर कौन अब ये बतायेगा तुझे?
महसूस करती हूँ तुम्हारी कमी,
शायद तुम अब आ जाते कहीं।
संजोयी है मैंने, कुछ हसीन यादें,
खाये थे जब हमने, जीने मरने की वादे।
छेड़ने, रूठने, मनाने का वो सिलसिला,
रूलाती है मुझे, भरती है मन में गिला।
अब और न तड़पाओ, चले आओ,
इन आँखों को न तरसाओ, लौट आओ।
थक गई हूँ, तुम्हारी राह निहारती,
भर लो बाँहो में साजन, मिटा दो इंतजार की घड़ी।
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