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जलता देश

पत्थरों से घायल 
आग में झुलसे 
वतन को देख
स्वर्ग में परेशान बैठे
भगत सिंह ने 
पास से मुस्कुराकर गुज़रते
गाँधी जी से कहा
बापू! 
आपके अनुयायी
जा रहे हैं 
श्मशान की ओर
इंसानियत पर 
पत्थर बरसाते
सभ्यता को स्वाह करते
कंधों पर 
अंहिसा की अर्थी उठाए
बापू बोले 
भगत! चिंता मत करो
आज़ादी है 
भारत के हर नागरिक को
अभिव्यक्ति की
विरोध प्रदर्शन की
शायद 
आंदोलन के नाम पर 
अराजकता फैलाने की भी
पर 
बुलडोजर से घर गिराना
तानाशाही है 
हनन है अधिकारों का
दमन है
धर्मनिरपेक्षता का 
लोकतंत्र की हत्या हो रही है
संविधान ख़तरे में है
भगत! 
तुम नहीं समझोगे 
पहले भी कब तुमने 
मेरी बात मानी थी
पर सुनो! 
परेशान नहीं होते
अब मैं भी 
इस आगजनी पर 
नहीं करूँगा अनशन
तुम कहो अपने साथियों से
फेंके हुए पत्थरों
अथवा 
भग्नावशेषों के पास बैठकर
करें सत्याग्रह
ताकि हो शर्मिंदा
षड्यंत्रकारी खादी 
तभी पूरी होगी
तेरे सपनों के
भारत की खोज 
बचेगा संविधान 
ज़िन्दा रहेगी धर्मनिरपेक्षता
चलता हूँ
प्रार्थना का समय हो गया है
कहकर बापू चले गए 
तभी आवाज़ आई 
दंगाईयों ने
एक और ट्रेन जलाई 
इससे पहले
मैं कुछ कह पाता 
सपना टूट गया
साथ 
भगत सिंह से छूट गया
अच्छा हुआ 
वरना क्या कहता
भगत सिंह को 
कि आज के युवा 
आप की तरह 
दुश्मनों पर
हथियार नहीं चलाते
उन्हें स्वीकारते हैं
गले लगाते हैं
उनकी सलाह पर 
अपने घरों को
अपने देश को
आपके सपनों को
अपने हाथों से जलाते हैं। 

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