कविनिकेतन
काव्य साहित्य | कविता प्रद्युम्न आर चौरे30 Mar 2018
जहाँ विचारों की विविधता और
कल्पनाओं का सम्मान है।
जहाँ भाषाओं का सम्मेलन और
शब्दों का आवाम है॥
जहाँ सोने के सिक्कों से ज़्यादा
अल्फ़ाज़ों का दाम है।
कवियों के मन में वो बसता
कवियों का एक धाम है॥
हर सदी के क़लमकार का
जहाँ होता साक्षात्कार है।
जहाँ मीरा का प्रशासन है और
कबीरा की सरकार है॥
जहाँ दिनकर के व्यंग्यों से लगता
हर ज़ुबां पे ताला है।
जीवन का यथार्थ बताती
मृदुभाव मधुशाला है॥
जहाँ वर्ड्सवर्थ के वर्णन से
कुदरत भी शर्मा जाती है।
जहाँ हरिओम की अग्नि
हर मन में ज्वाला भड़काती है॥
जहाँ भवानी के भावों से
सब मंगल हो जाता है।
बंजर मन भी सतपुड़ा का
घना जंगल हो जाता है॥
जहाँ निराला की रचनाएँ
हृदय पर कब्ज़ा करती हैं।
मेघ बन-ठन जाते हैं और
बारिश भी बातें करती हैं।
विश्वास के शृंगार रस से
मन में प्यार बहता है
बशीर बद्र के बंधों का
हर दिल पर जादू रहता है॥
ग़ालिब की रूहानियत जहाँ के
रोम रोम में छाई है।
माखन की क़लम के आगे
तलवारें धराशाई है॥
गुलज़ार गली के शेरों से
गूँजे गली-गलियारे हैं।
साहित्य रूपी रत्नाकर में
डूब चुके यहाँ सारे हैं॥
जहाँ अल्हड़ बीकानेरी की
अल्हड़ता सब पर भारी है।
अनुभवों से सिंचित होती
अनुभूति की क्यारी है॥
काल्पनिक सी उस जगह का
कविनिकेतन नाम है।
कवियों के मन वो बसता
कवियों का एक धाम है॥
जहाँ गीता से पहले होते
गीतांजलि के दर्शन हैं।
तुकबंदी ज़र्रे ज़र्रे में
कविता कण कण में हैं॥
शब्दों की शमशीर तानने का
मैं भी अभिलाषी हूँ।
उस कविनिकेतन के कमरों का
मैं भी एक निवासी हूँ॥
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