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केदारनाथ मंदिर

रुद्रप्रयाग अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम

गुप्तकाशी हैलीपैड

केदारनाथ धाम दर्शन

 

कहते हैं कि जीवन में जब आपको अवसर मिले और कोई अन्य अतिरिक्त अनिवार्य कार्य भी आपको दबोचने के लिए तैयार न बैठा हो तो आपको अपने मन में दबी हुई वर्षों की साध को पूरा कर लेना चाहिए। ऐसा ही एक उचित अवसर पिछले वर्ष मुझे भी मिला और मैं भी अपने बारह सहयोगी मित्रों के साथ बाबा केदार से मिलने केदारनाथ निकल पड़ी। रात आठ बजे हमारी मिनी बस जब हमें दिल्ली से लेकर निकली तो यक़ीन नहीं हुआ कि सच में मैं केदारनाथ धाम की यात्रा पर हूँ! रोमांच और अविश्वास से भरी हुई मैं पीछे छूटती दिल्ली और दिल्ली की तरफ़ भागते वाहनों के शोरगुल में घंटों डूबी रही। लगभग एक बजे हवा में घुली हुई ठंडक से नींद खुली तो देखा हमारे साथ-साथ पवित्र गंगा नदी बहुत शांत भाव से बह रही थी। आस पास के पहाड़ अँधेरे में डूबे हुए थे पर उन पहाड़ों पर बसे हुए घरों की रोशनियाँ जुगनुओं की भाँति टिमटिमा रही थी। लगभग एक घंटे बाद हमारी बस एक होटल के सामने रुकी। वहाँ दो घंटे विश्राम कर और आगे के दुर्गम रास्ते की यात्रा के लिए अपार शक्ति और ऊर्जा को समेटे हमारी मिनी बस पहाड़ों की उचाईयों में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी।

अब सब कुछ बदल चुका था। रात में जब यात्रा शुरू की थी तो दिल्ली की उमस भरी गर्मी, प्रदूषण, धूल, शोरगुल, भीड़, गाड़ियों की चिल्ल-पों बैचेन कर रही थी। लेकिन अब जैसे दृश्य बदला हुआ था। अँधेरा छँट चुका था। अब लग रहा था कि मन में दबी हुई बरसों की साध पूरी हो जाएगी क्योंकि हमारी तरह सभी बाबा केदार के दर्शन की इच्छा मन में लिए हुए और हर-हर महादेव की रट लगाते हुए उसी तरफ़ बढ़ते चले जा रहे थे। क्या बस, क्या मिनी बस, जीप, टैक्सी, मोटर साइकिल में सवार सभी का गंतव्य एक ही था। सभी के मन में शिव भक्ति का अपूर्व संचार था और तन में अदम्य उत्साह का भाव। शिव भक्तों का रेला उन अदम्य पहाड़ियों में एक अद्भुत दृश्य पैदा कर रहा था। मौसम की अनुकूलता हमारे मन के भक्ति भाव को द्विगुणित कर रही थी। प्रकृति के सौंदर्य को निहारते हुए हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में छोटे-छोटे पानी के कुंड और बहते झरने हमारा स्वागत कर रहे थे। वे मानों कह रहे थे कि—‘शिव के धाम केदार जा रहे हो तो अपने तन-मन की मैल को यहीं साफ़ कर लो। ये देवों की भूमि है, यहाँ शुचिता अनिवार्य है।’ और हम सभी इसी भाव में पगे हुए अपनी बस की खिड़की से हाथ बाहर कर उस पवित्र जल को ग्रहण कर उसके छीटें अपने मुँह और शरीर पर मार रहे थे।

अब हम आ पहुँचे थे—गढ़वाल मण्डल के रुद्रप्रयाग ज़िले में। रुद्रप्रयाग अलकनंदा नदी के पंच प्रयाग में से एक है और यहाँ अलकनंदा और मन्दाकिनी नदी का संगम स्थित है। केदारनाथ यहाँ से 86 किलोमीटर दूर है। आज तक जिस संगम को टीवी और गूगल द्वारा देखा था आज वो संगम साक्षात्‌ हमारी आँखों के सामने था। सड़क के किनारे अपनी-अपनी गाड़ियों को खड़े कर सभी लोग इस पवित्र संगम को निहार रहे थे। अपनी-अपनी श्रद्धा सभी दूर से ही उस संगम में समर्पित कर रहे थे। उस अलौकिक दृश्य को घड़ी भर निहार हम सब भी अपनी मिनी बस में बैठ आगे बढ़ चले क्योंकि हमने चॉपर द्वारा गुप्तकाशी से केदारनाथ धाम पहुँचना था। चॉपर का समय तय था और उस तय समय से एक घंटे पहले हैलीपैड पर पहुँचना अनिवार्य था। बारिश के कारण रास्ता बहुत ख़राब था और हमारी बस बहुत धीमे गति से आगे बढ़ रही थी। शाम को चार बजे हमें गुप्तकाशी हैलीपैड तक पहुँचना था लेकिन गुप्तकाशी पहुँचते-पहुँचते शाम के पाँच बज गए। दिल्ली से जो योजना बनाकर हम चले थे कि आज चार बजे हम चॉपर से केदानाथ पहुँचेगे और लगभग सात मिनट बाद बाबा केदार के पास होंगे और शाम की संध्या आरती में शामिल हो रात वहीं व्यतीत करेंगे लेकिन सारी योजना धरी की धरी रह गई थी।

हमें बताया गया कि अब आप कल सुबह छह बजे के चॉपर से जाएँगे। बाबा केदार की योजना हमारी योजना से कहीं बड़ी थी और हम सबने भी उनकी योजना को ही अपनी योजना बना लिया और रात गुप्तकाशी के एक रिज़ॉर्ट में बिताई। दूसरा दिन नए आश्चर्य लेकर हमारे सामने था। हम सभी जल्दी तैयार हो कर 5:30 बजे ही हैलीपैड पर पहुँच गए। नियत समय पर हम छह साथी एक चॉपर में बैठे बाक़ी के सात पीछे रह गए। उन्हें दूसरे चक्कर में इस चॉपर से जाना था। चॉपर में बैठने का यह मेरा पहला अनुभव था संभवतः बाक़ियों का भी रहा होगा। चॉपर ने अपनी उड़ान भरी तो मन में एक क्षण के लिए डर तो पैदा हुआ पर उस डर पर केदार बाबा के धाम पहुँचने के रोमांच ने तत्काल विजय पा ली। केदारनाथ में हेलीकाप्टर क्रैश होने की घटनाएँ भी मन में एक डर बनाए हुई थीं। उन ऊँचे दुर्गम पहाड़ों पर हमारा चॉपर एक छोटे पक्षी की भाँति मँडराने लगा। पाँच मिनट के बाद ही आबादी दिखने लगी तो हमारे पायलेट ने चॉपर वापस मोड़ लिया। ख़राब मौसम जिसे वहाँ वैदर पैक कहा जाता है, के चलते हम वापस गुप्तकाशी के हैलीपैड पर आ गए। बाक़ी चॉपर भी अपनी अपनी उड़ानों को स्थगित कर मौसम ठीक होने का इंतज़ार करते रहे लेकिन मौसम पूरा दिन ठीक नहीं हुआ।

गुप्तकाशी की घाटी में धूप खिली हुई थी लेकिन ऊपर वैदर पैक (बादलों से भरा हुआ) था। पूरा दिन हमारा हैलीपैड पर बीता। नज़रें ऊपर घाटी की तरफ़ थी और मन में एक प्रार्थना कि हे शिवा! अब तो बुला लो–अपने दर्शन करने! छह बज गए और चॉपर के उड़ने का समय भी समाप्त हो गया। मन में सोचा पैदल चलते तो अब तक पहुँच गए होते पर बाबा की मर्ज़ी देखो कल क्या होता है। अगर ऐसे ही वैदर पैक रहा तो पैदल यात्रा का भी सोचा जा सकता है। ख़ैर! सभी अनमने से हैलीपैड से उतरकर रिज़ॉर्ट पहुँचे। पहाड़ का सादा और सुस्वादु भोजन खाकर मन तृप्त हुआ लेकिन बाबा केदार तक न पहुँच पाने की पीड़ा मन में रही। रात जैसे-तैसे आँखों में कटी। सुबह सभी नियत समय पर हैलीपैड पर पहुँचे। धूप खिल रही थी। कल का अनुभव मन में था पर बिना किसी भाव के बाबा केदार की तरफ़ हाथ जोड़ दिये और चॉपर में बैठ गई। ठीक सात मिनट बाद चॉपर ने केदारनाथ की धरती को छुआ और मन दौड़ पड़ा बाबा केदार की तरफ़ हालाँकि क़दमों की गति का मन की गति से कोई मेल नहीं था। पाँच मिनट की पैदल यात्रा और चढ़ती सीढ़ियों को पार कर हम सब निःशब्द हाथ जोड़े बाबा केदार के सम्मुख खड़े थे। हमारे बाक़ी साथी भी चॉपर के दूसरे राउंड में वहाँ पहुँच चुके थे। मंदिर के मुख्य पुजारी ने हमें विशेष दर्शन और पूजा अर्चना करवाई। अन्य भक्तों की एक लंबी क़तार वहाँ थी। एक क्षण को मन में यह भाव तो आया कि हम भी इस क़तार में शामिल होते तो ठीक रहता लेकिन उससे कहीं अधिक ये भाव बलवती था कि आज बरसों की इच्छा पूरी हुई। जब शिव की इच्छा होगी तभी केदारनाथ जाना होगा। और आज वो दिन है बाबा केदार हमारे सामने हैं और हम सब मूक!!!!! जैसे हमारी इच्छा पूरी हुई वैसे ही सबकी करना। जय श्री केदार!

केदारनाथ मंदिर

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टिप्पणियाँ

विजया सती 2023/08/10 12:19 PM

बहुत सुंदर आलेख जैसे साक्षात दर्शन !

कृपया टिप्पणी दें

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