पीला काग़ज़
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सारिका कालरा2 Apr 2015
सरकारी दफ़तरों की फाइलों में
पड़ा हुआ पीला काग़ज़
पड़े-पड़े और पीला हो रहा है।
उस पर कुछ हस्ताक्षर हैं
स्टैम्प के साथ।
हस्ताक्षर करने वाले
अपने नाम और पद के साथ
साक्षात वहाँ उपस्थित हैं।
उस काग़ज़ पर अंकित है
कोई योजना जो जुड़ी है
उस किसान से
जो दूर अपनी झोंपड़ी के बाहर
इंतज़ार कर रहा है
उस काग़ज़ के सरकने का।
वो पीला काग़ज़ सरकेगा तो
उसे शायद माथे पर हाथ रखकर
ताकना नहीं पड़ेगा सूरज को।
न ही फेरना पड़ेगा मुँह लेनदार से।
फ़ाइलों में पड़ा पीला काग़ज़
और पीला हो रहा है
उसका पीलापन अब उभर आया है
किसान के चेहरे पर।
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