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कृष्ण कन्हैया लाल की

भादौं की घनघोर भयानक, औ' अँधियारी रात में।
वसुदेव जी लिये लाल को, भीग रहे बरसात में।
 
बढ़ी हुई यमुना उफान पर, घर घर शोर मचाती है।
जिसका भय प्रद स्वर सुन करके, रूह काँप सी जाती है।
 
है किसको परवाह जान की, चिंता किसको काल की।
चिंता तो है वसुदेव को, कृष्ण कन्हैया लाल की।
 
बिठा टोकरी सिर पर रख कर, चले बचाने जान को।
जो सबकी हैं रक्षा करते, उन्हीं कृष्ण भगवान को।
 
लीलाधर की लीला देखो, सब निर्भर जगदीश पर।
आज टोकरी में छुप बैठे, वही पिता के शीश पर।
 
रखे शीश पर शिशु कान्हा को, आगे बढ़ते जाते हैं।
स्वयं ब्रह्म को आज बचाने, को आकुल घबराते हैं।
 
धीरे-धीरे जल की धारा, उन्हें डुबोती जाती है।
प्रभु के 'कोमल' पद कमलों को, छूने को ललचाती है।
 
प्रभु के पद-पंकज छूने में, बाधा है यह बड़ी विकट।
मेरी धार बढ़ी यदि ऊपर, वसुदेव पर जीवन संकट।
 
अन्तर्यामी प्रभु ने पढ़ ली, कालिन्दी के मन की भाषा।
पद-पंकज नीचे लटकाये, यमुना कर पूरी अभिलाषा।
 
गरज रहीं घनघोर घटाएँ, बरस रही जल धार प्रबल।
शेषनाग ने छाया करके, अपना जीवन किया सफल।

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