कुछ अनकही सी . . .
काव्य साहित्य | कविता अमित शर्मा9 Jan 2008
मिले वो बाद अर्से के आज
हुई फिर उनसे
बातें कुछ अनकही सी
लब उनके सिले थे
लब हमारे सिले थे
ख़ामोशी से आँखों-आँखों में
बातों के वो दौर चले थे
देती थी सुनाई
उनके दिल की धड़कन
छूती थी मुझको
उनके साँसों ही गर्माहट
होती थी साफ़ महसूस
हरारत उनके बदन की
झलकती थी बेताबी चेहरे पर
उनके चँचल मन की
आपस में उलझी उँगलियाँ
दिखाती थी उथल-पुथल
कुछ ख़्यालों की
जो चल रही थी
अंतर्मन में कहीं
वहो गहना भी क्या था शर्म का
पहना जो उन्होंने था
एक दूजे की आँखों में
दोनों यों डूबे थे
कुछ ख़बर ना थी
कब दिन का दामन छूटा
और शब ने कलाई थाम ली
अब तो वक़्त-ए-रुख़्सत था
जाने कैसे इन पलकों ने
अश्कों की बाढ़
आँखों के साहिल पर थाम ली . . .
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