मायने . . .
काव्य साहित्य | कविता अमित शर्मा9 Jan 2008
क्यों करती हो तुम
बार-बार बस एक ही सवाल
आख़िर क्या मायने हैं
तुम्हारी ज़िन्दगी के
क्यों मिला है तुम्हें ये जन्म
समझाया है मैंने हमेशा तुम को
बनाने वाले ने सब को एक सा बनाया
दिए सब को दो पैर-दो हाथ
एक दिल, दो आँख और एक दिमाग़
दी आँखें, देखो दुनिया को
दिया दिमाग़, समझो इस को
दिया दिल, करो साहस रखो विश्वास
दिए पैर, हिम्मत कर खड़े होने को
और हाथ, कुछ कर गुज़रने को
फिर क्यों पूछते हो यह बार-बार
नहीं तो तुम मज़लूम
नहीं हो तुम लाचार
उठो, अगर नहीं मिलते मायने ज़िन्दगी के
करो कुछ नया सर्जन
और दो ख़ुद के मायने
ज़िन्दगी को अपनी तुम . . .
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