क्या कहेंगे लोग?
काव्य साहित्य | कविता प्रियंका गुप्ता1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
जन्म से मरण तक,
सबको सताता है एक रोग,
क्या कहेंगे लोग, आख़िर क्या कहेंगे लोग?
मन में बैठा भय इस क़द्र,
हर क़दम पर लगता है डर,
पुरानी रूढ़ियाँ तोड़ने में,
नई उड़ाने भरने में,
निस्संकोच बात कहने में,
मस्त मग्न हवा में बहने में,
लिंग-भेद मिटाने में,
चहुँ-ओर समानता लाने में,
कुछ पुराना भुलाने में,
कुछ नया सीख जाने में।
न जाने कितनी आशंकाएँ भरता है डर,
कितनों के पंख कतरता है
रुचि-अभिरुचि कुचलता है डर,
सपने रौंदता चलता है
रूप-रंग का मापदंड बनाता,
कुंठाग्रस्त कर जाता है,
सबको फ़र्ज़ बतलाता,
स्वयं न्यायधीश बन जाता है।
आख़िर क्यों पालें ये डर,
क्या है इसका उपयोग?
जब है जीवन एक ही,
क्यूँ न करें बेहतर उपभोग!
लोक-विचार, ज़मीनी हक़ीक़त
है मात्र एक संयोग!
ना कर इतना सोच-विचार,
मत ख़ुद को तू रोक!
“बदल रहा है ज़माना,
आख़िर क्या ही कहेंगे लोग?”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं