लाठी का महत्व
कथा साहित्य | लघुकथा आलोक कुमार सातपुते25 Nov 2009
एक कुत्ता अपने खानाबदोश मालिक के साथ रहता था। उसका मालिक जिस-जिस गाँव में डेरा डालता, उसे अपने साथ ले जाता। गाँव में घूमते समय भी वह उसे अपने साथ ही रखता। मालिक अपने अपने हाथ में एक लाठी भी लेकर चलता था, जिससे गाँव के दूसरे कुत्ते उसके कुत्ते पर दूर से ही भौंक कर रह जाते। नज़दीक आने का साहस नहीं कर पाते थे, जबकि उसका कुत्ता यह सोचता था कि मालिक बूढ़ा हो चला है, इसीलिये वह मेरा और लाठी का सहारा लेकर चलता है। वह सोचता मनुष्य भी कितना पराश्रित हो गया है। वह बड़े घमण्ड से अपने कान खड़े कर, और सिर ऊँचा करके चलता, और सोचता कि मनुष्यों ने भी कैसी-कैसी कहावतें गढ़ ली हैं कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। मैंने उन्हीं की गली में शेर बनकर दिखा दिया है। धीरे-धीरे उस कुत्ते में घमण्ड बढ़ने लगा।
एक दिन उसका मालिक बाज़ार करने के लिए पास ही एक कस्बे में गया हुआ था, और कुत्ते को घर पर ही छोड़ गया था। वह घमण्डी कुत्ता अकेले ही गाँव के कुत्तों पर रोब झाड़ने के लिये निकल पड़ा, और आवारा कुत्तों के चक्कर में पड़ गया। बस फिर क्या था, उसे अपनी औक़ात और लाठी का महत्व समझ में आ गया।
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