सेवकपुर
कथा साहित्य | लघुकथा आलोक कुमार सातपुते25 Nov 2009
उसे देश में राजशाही की परम्परा थी, और राजा बड़ा ही अलोकप्रिय हो चला था। आस-पास के दूसरे देशों में लोकतंत्र की बयार बह रही थी। उस देश के लोग भी अपने यहाँ लोकतंत्र लागू करवाना चाह रहे थे, और इस हेतु क्रान्ति के लिये माहौल बनाने में जुटे हुए थे। परेशान राजा ने राजगुरु से सलाह ली। राजगुरु की सलाह पर राजा ने ख़ुद को प्रजा का सेवक घोषित कर दिया। राजदरबारी अब शासकीय सेवक हो गये। कुछ समाजसेवक तो पहले ही थे। अब एन.जी.ओ. भी समाज की सेवा की दुकान लगाने लगे। और तो और, प्रजा का खून चूसने वाले व्यापारी भी खुद को सेवक कहने लगे। आम जनता में भी कई तरह के सेवक पैदा हो गये। राज्य में जो जितना अधिक सम्पन्न था वो उतना ही बड़ा सेवक माना जाने लगा। इस तरह उस राज्य में लोकतंत्रात्मक राजशाही क़ायम हो गयी, और जन-भावना के मद्देनज़र उस देश का नाम सेवकपुर रख दिया गया।
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