मातृत्व
काव्य साहित्य | कविता आकांक्षा यादव23 May 2017
उसके आने के अहसास से
सिहर उठती हूँ
अपने अंश का
एक नए रूप में प्रादुर्भाव
पता नहीं क्या-क्या सोच
पुलकित हो उठती हूँ
उसकी हर हलचल
भर देती है उमंग मुझमें
बुनने लगी हूँ अभी से
उसकी ज़िन्दगी का ताना-बाना
शायद मातृत्व का अहसास है।
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