मौन रहकर भी
काव्य साहित्य | कविता अ कीर्तिवर्धन1 Jan 2015
मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,
दर्द चेहरे से बयां वो हो रहा है।
सोचा था जीऊँगा ख़ुशहाल होकर,
तनहा जीवन आज बोझिल हो रहा है।
उम्र गुज़री सोचा नहीं मैंने कभी कुछ,
जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है।
साथ थे मेरे हज़ारों हम सफ़र,
आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है?
मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ,
पतझड़ सा यौवन, उजड़ा सा आँगन हो रहा है।
आँसू नहीं बहते मेरी आँख से अब,
राज़े दिल, कौन फिर खोल रहा है?
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