अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरा बचपन

 

मैंने देखा एक दिन सपना। 
वापस पा गया, मैं बचपन अपना॥
 
झूलों पर झूलने की कर रहा तैयारी, 
साथ में थी बन्दर सेना सारी। 
जब झूले ने बच्चों का साथ पाया, 
उसने हमको ख़ूब झुलाया॥
 
फिर खेलने पहुँचे क्रिकेट, 
लेकर साथ में गेंद और बैट। 
विपक्षियों ने फ़ील्डिंग सजाई, 
फिर भी चौके-छक्के रोक ना पाई॥
 
फिर पहुँचे खेलने कंचे, 
वहाँ मिले अनेक बच्चे। 
बच्चों ने ख़ूब रंग जमाया, 
कंचे खेलने में बहुत मज़ा आया॥
 
अब तो थी लट्टू की बारी, 
खेलने की हुई पूरी तैयारी। 
सबने लट्टू ख़ूब नचाया, 
मुझको तो बहुत मज़ा आया॥
 
गए खेलने अब गिल्ली-डंडा, 
लगा जहाँ था टीमों का झंडा। 
देर तक गिल्ली को भगाया, 
जीवन का सच्चा सुख पाया॥
 
फिर आई लुकाछिपी की बारी, 
छुपने की हमने की तैयारी। 
मैंने ख़ुद को ऐसे छिपाया, 
कोई मुझको ढूँढ़ न पाया॥
 
फिर तो थी खाने की बारी, 
तभी माँ ज़ोर से पुकारी। 
उठ बेटा, कर श्रेष्ठ काज, 
सबको होगा तुझ पर नाज़॥
 
सपने में बचपन के दिन याद आएँ। 
काश! उसे हम फिर से पाएँ॥

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कविता

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं