स्वाभिमानी हिंदी
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता विवेक कुमार तिवारी15 Feb 2025 (अंक: 271, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
विश्व पटल पर छाने को आतुर,
यह तो पूरी ज़िद्दी है।
है कोई यह व्यक्ति नहीं,
स्वाभिमानी भाषा हिंदी है॥
अपमान पर पहले साधी चुप्पी,
समझा सबने इसको कमज़ोर।
जागृत हुई है लेकिन जबसे,
मचा हुआ है सब ओर शोर॥
अपने स्वाभिमान की ख़ातिर,
भिड़ने को औरों से तैयार।
था इसको सबने ठुकराया,
फिर भी मानी ना इसने हार॥
अपने अतुलित स्वर ज्ञान से,
जगत को है ताक़त दिखलाई।
सरल और मधुर व्याकरण से,
हिंद की महिमा जग में फैलाई॥
विविध बोलियों की क्यारी है,
भारत माता की दुलारी है।
श्रेष्ठता को परिभाषित करती,
राष्ट्रभाषा हिंदी हमारी है।
बोलोगे जब सब हिंदी ही,
हरदम अपनापन पाओगे।
जब समझोगे मर्म हिंदी का,
इसको ही तो अपनाओगे॥
हिंदी का तुम मान बढ़ाओ,
दैनिंक प्रयोग में इसे अपनाओ।
जगत को भी महत्त्व समझाओ,
विश्व में इसका परचम फहराओ॥
जीवन सरल बनाने को
हिंदी जग में छाई है,
धरती और अंतरिक्ष ने भी,
हिंदी की महिमा गाई है॥
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