मेरा श्रम ही मेरा धन है
काव्य साहित्य | कविता विमल शुक्ला 'विमलेश'16 Jan 2018
मैं फिसला हूँ धँसा नहीं हूँ,
सम्हल रहा हूँ रुका नहीं हूँ,
इतना ही मेरा अर्जन है,
मेरा श्रम ही मेरा धन है.
किंचित कोई आड़ नहीं जब,
वय भी मेरा त्राण नहीं जब,
आँख झँपी थी स्वाँस गिरी थी,
हाथों में ज़ंजीरें सी थीं,
दानव सी निष्ठुर सीमाएँ ,
और व्यग्रता बढ़ा रही थीं,
उस पीड़ा को जीकर भी,
मैंने न देखा था मुड़कर,
मुझे नहीं भय तनिक मृत्यु से,
यही सीख पायी जीकर..
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