मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना है
काव्य साहित्य | कविता मुहम्मद आसिफ़ अली15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं
मुझे भी दीदार-ए-संविधान करना है
ये नफ़रत की राजनीति अब देखी नहीं जाती
मुझे भी राजनीति के कुछ हिस्सों को बदलना है
आओ जमकर कहें बुरा जो जितना बुरा है
क्यों हमें भी नफ़रत की आग में जलना है
जिनके बहे लहू उनकी याद नहीं मिटने देंगे
बस यही जोश अपने देश में भरना है
क्यों डरें किसी के डराने से अब हम
अब तो बस आस्तीन के साँप को डरना है।
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