मुस्कुरा दो एक बार
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रेणुका शर्मा20 Mar 2014
मुस्कुरा दो एक बार,
क्यों हो? समुद्र किनारे बिखरे मोतियों से अकेले,
अनमने सपनों से,
मुस्कुरा दो एक बार, अपनेपन से
भर लो इन सीपियों के प्यालों को, अपने अरमानों से,
रीत जायेगा रीतापन,
भर लो जीवन को, ख़ुशियों के ख़ज़ानों से,
जी लो हर पल, बीत जाएगा यूँ ही,
ये काम, भाग दौड़, ला देगा यूँ ही तुम्हें भी,
बीते कल की क़तार में ला खड़ा।
तब सोचोगे, कितना सुन्दर
यहाँ संसार फैला है पड़ा,
क्यों हो? समुद्र किनारे बिखरे मोतियों से अकेले,
अनमने सपनों से
मुस्कुरा दो एक बार, अपनेपन से।
भर लो, इन सीपियों के प्यालों को, अपने अरमानों से।
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