परवरिश
शायरी | नज़्म नीतू कुमार 'नीता'1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सुहानी सहर को दरकिनार नहीं कर सकता
ऐ अँधेरो! तुम्हें मैं स्वीकार नहीं कर सकता
अडिग भरोसे का राही, सच का सिपाही हूँ
झूठ और फ़रेब का कारोबार नहीं कर सकता
मेरे उसूलों को नादानी समझने वालो! सुनो!
चन्दन हूँ, विष का व्यापार नहीं कर सकता
अना1को दाँव पर रखना मंजूर नहीं हरगिज़
संस्कारों की दहलीज़ पार नहीं कर सकता
हर औरत का एहतराम2 'नीता' मेरी नज़र में है
अपनी परवरिश को शर्मसार नहीं कर सकता
1.अना=आत्मसम्मान,स्वाभिमान; 2.एहतराम=सम्मान
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