परवरिश का असर
काव्य साहित्य | कविता आमिर दीवान15 Sep 2019
बहुधा मैं ये सोचा करता
परवरिश का असर कितना है पड़ता
इंसान के आचार पर
विचार और व्यवहार पर
स्वभाव पर, कर्म पर मन पर
अन्तोत्गत्वा पूरे ही जीवन पर
कुछ तो कहते बड़ा असर है
सारा पालन पर ही तो निर्भर है
नैसर्गिक चाहे जो हो वृत्ति
पर छोटे बच्चे कच्ची मिट्टी
माँ बाप चाहे त्यूँ ढालें
पशु को सभ्य मनुष्य बना लें
पर यदि बात यूँ सीधी सी होती
तो घर घर बुद्धों की न जलती ज्योति
इरछी-तिरछी कई कोणों पर मुड़ती
ये गाथा तो पूर्व जन्म के कर्मों से जुड़ती
उन सारी यात्रायों के संस्कार
से ही तो नव-जीवन लेता आकार
फिर कुछ लोगों का पक्का मत है
की ये तो ज्योतिष का ही खेल समस्त है
आदतें गुण शक्ति सीमाएँ
सबकी मालिक तारों की दशाएँ
ज्योतिष तो सटीक समय पर निर्भर
मतभेद बड़ा इसको भी लेकर
कि क्या आत्मा का गर्भ प्रवेश सही जन्म है
या उचित समय प्रसव का क्षण है
फिर विज्ञान की तो अपनी अलग ही थ्योरी
की पूर्व जन्म ज्योतिष इत्यादि बकवास है कोरी
सब गुण सूत्र और डीएनए से तय हैं
स्टेम सेल्स पे प्रयोग होते रोज़ नए हैं
जेनेटिक्स के शोध में ये हे पाया
के पूरे जीवन का ब्लू प्रिंट पहले से समाया
लेकर ये सारे पूर्व निर्देश
बच्चा जग में करता प्रवेश
फिर जन्मते ही परिवार से पाता दीक्षा
फिर स्कूल से मिलती ढेर सी शिक्षा
देश धर्म युग और भाषा
सब थोपते अपनी अलग परिभाषा
साहित्य सिनेमा समाज की संगत
और सबसे बढ़ कर माली हालत
इन सारी चीज़ों का कमोबेश योगदान
मिलकर करता व्यक्तित्व का निर्माण
तो इतना बड़ा ये गोरख धंधा
बिन आदि अंत की ये महागाथा
बहुधा में ये सोचा करता
मात्र परवरिश का असर कितना पड़ता
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