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पथ प्रदर्शक

पहला पग उठा के साथी, 
किस डगर की ओर धरूँ? 
जागते सपनों में सोच रहा, 
किस रजनी की भोर चलूँ? 
 
अपनी मंज़िल पाने वालो, 
या लौट बीच से आने वालो, 
बतलाओ इस नए पथिक को, 
 
इस पथ या उस पथ की ओर चलूँ? 
किसमें कितनी बाधाएँ हैं? 
फूल नहीं पर, किस में काँटे कम आएँ हैं? 
किन यादों को साथ लिए, 
और किन को अब मैं छोड़ चलूँ? 
 
पदचिह्नों पर क़दम बढ़ाता, 
उन पर ख़ुद के चिह्न बनाता, 
ज़्यादा पथिक गए जहाँ थे, 
उस पथ या मुख उनसे मोड़ चलूँ? 
 
क्या आती हैं यादें बीच राह में 
या सब कुछ धुँधला होता है, 
नाते रिश्ते बने जो अब तक, 
सबको क्या मैं तोड़ चलूँ? 
 
जीत हार की चिंताओं को, 
सिर पर बाँधे बोझ चलूँ, 
या जो होगा देखा जायेगा, 
बस सोच यही मैं निकल पड़ूँ, 
 
चाल कछुए की सी या 
चाल खरगोश चलूँ, 
या पहले धीरे धीरे फिर, 
अचानक ज़ोर चलूँ, 
 
गर बीच राह में भटक गया, 
या किसी जाल में अटक गया, 
तो बच निकलने के ख़ातिर, 
क्या पीछे बाँधे डोर चलूँ? 
 
पहला पग उठा के साथी, 
किस डगर की ओर चलूँ? 

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