कोरोना की बीमारी
काव्य साहित्य | कविता कृष्ण कांत शुक्ला15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
ग़लती यह किसकी,
हमारी या तुम्हारी जी
कोरोना की यह बीमारी जी
एक तो मार ग़रीबी की लाचारी
उस पर कोरोना की बीमारी जी
भूखे बच्चों का चेहरा देख
दिल पर चलती कटारी जी
भरपेट खाते थे तब कभी
अब खाके आधा पेट होती गुज़ारी जी
ग़लती यह किसकी,
हमारी या तुम्हारी जी
कोरोना की यह बीमारी जी
हवा पर भी फैलता ज़हर
खुल के जीने पर मौत भारी जी
जीवन और मौत में फँसी
जिंदगी यह कैसी तलवार द्विधारी जी
ग़लती यह किसकी,
हमारी या तुम्हारी जी
कोरोना की यह बीमारी जी
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