फागुन पर गीत
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
दहक रहा टेसू पिया, फूल रहा कचनार।
फागुन की पदचाप से, झंकृत मन के तार।
थिरके मेरे पाँव अब, सुन ढोलक की थाप।
मनवा भी करने लगा, पिउ-पिउ का जाप।
चहुँ-दिश प्रिय! होने लगी, रंगों की बौछार।
फागुन की पदचाप से, झंकृत मन के तार।
बैरन पुरवा बन गयी, उर से खींचे चैन।
पथ-निहारते थक गए, साजन मेरे नैन।
काया कजली पड़ गयी, बहती कजरा-धार।
फागुन की पदचाप से, झंकृत मन के तार।
आती मुझको लाज है, कहते मन की बात।
करवट में ही बीतती, प्रिय! मेरी हर-रात।
अगन लगाए साजना, देखो मदिर-बयार।
फागुन की पदचाप से, झंकृत मन के तार।
ताने देती सास भी, देवर करें मख़ौल।
सिसक रहा यौवन पिया, अब तो आँखें खोल।
कलियाँ भी मुस्का रही, भ्रमर करें गुंजार।
फागुन की पदचाप से, झंकृत मन के तार।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
गीतिका
दोहे
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं