फिर चमन है मुस्कुराया
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत योगेन्द्र पांडेय1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
गीत भौंरा गुनगुनाया
साथ में बसन्त आया
हो गए हैं दिन बहुत
पिय का मिलता न सुध
चित पे क्यों दुख है छाया
फिर चमन है मुस्कुराया॥1॥
बादलों की ओट से
बिजलियों की चोट से
दर्द को सहता हुआ
आह को भरता हुआ
देख मौसम खिलखिलाया
फिर चमन है मुस्कुराया॥2॥
प्रात की किरणें सुनहरी
शांत बैठी है दोपहरी
लालिमा छाई क्षितिज पर
खिल उठा है पंछी का घर
अब निशा का वक़्त आया
फिर चमन है मुस्कुराया॥3॥
रात्रि का घनघोर पहरा
है कहाँ पे सूर्य ठहरा
ढूँढ़ता है जिसको जीवन
है छुपा किस ओर ये मन
जुगनुओं ने राह दिखाया
फिर चमन है मुस्कुराया॥4॥
शांत क्यों है आज रजनी
ढूँढ़ती किसको है अवनी
कौन है जो आ रहा है
गीत सुंदर गा रहा है
सुख अपने साथ लाया
फिर चमन है मुस्कुराया॥5॥
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