साथी घटा प्रीत की छाई . . .
काव्य साहित्य | कविता योगेन्द्र पांडेय15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
बिजुरी चमके आसमान में
हवा चले अपने गुमान में
रात अमावस है डर लगता, देख कर अपनी परछाईं
साथी घटा प्रीत की छाई!! 1!!
मतवाला बादल ये बरसे
मन चातक जाने क्यों तरसे
एक बूँद ज्यों गिरी सुधा की, वसुधा ने फिर ली अंगड़ाई
साथी घटा प्रीत की छाई!! 2!!
आसमान जब छटा सँवारे
प्यासी अखियाँ राह निहारें
मस्त घटा घनघोर देखकर, गूँज उठी मन में शहनाई
साथी घटा प्रीत की छाई!! 3!!
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