मैं हार मानूँगा नहीं . . .
काव्य साहित्य | कविता योगेन्द्र पांडेय1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
जीवन में है संघर्ष सघन
फिर भी ज़िन्दा हूँ मस्त मगन
चाहें जीवन की ज्योति बुझे, संकल्प त्यागूँगा नहीं
मैं हार मानूँगा नहीं॥1॥
ख़ुशियों का नित व्यापार करूँ
सुख दुःख दोनों स्वीकार करूँ
चाहें अंगारों पे चलना हो, पर छाँह माँगूँगा नहीं
मैं हार मानूँगा नहीं॥2॥
अनमोल मिला जो मानव तन
रखिये इसका सम्पूर्ण जतन
मन में कुंठा की आग जले, वह भाव चाहूँगा नहीं
मैं हार मानूँगा नहीं॥3॥
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