प्रयास
काव्य साहित्य | कविता डॉ. राम कुमार माथुर15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
समय की बहती अविरल धारा
क्यों उद्वेलित करती है मन को
चाह कर भी न रोक पाता हूँ मैं
उस शोर को जो समय के परिन्दे,
मेरे अंतर्मन को झकझोरते रहते हैं।
सूर्योदय से ही
कितने ही सपने,
सच होने की क़तार में बैठे हैं।
पक्षियों सेे पंख लेकर,
कुछ इधर-उधर उड़ने लगते हैं,
उस पेड़ के पक्षियों की तरह जो
आँगन के ठीक बीचों-बीच
लगाया था मेरे माली ने।
पर समय उनकी इस गति से भी तेज़
उड़ता क्यों रहता है?
पिंजरा ख़ाली है,
फिर भी
गर्मियों में
परिंदे आएँगे शायद
प्यास बुझाने के लिए।
कुम्हार बनना
और कुएँ से पानी खींचना,
पानी का घड़ा भरना
ये प्रयास
फिर लाएगा उन्हें
भर सकूँगा इन
ख़ाली पिंजरों को फिरसे शायद।
पक्षी फिर न उड़ सकेंगे,
सपनों से खेलना,
पक्षियों का चहचहाना,
समय के साथ साथ
चलता रहेगा
बस यूँही,
निरंतर!!
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