किसान का हाल
काव्य साहित्य | कविता डॉ. राम कुमार माथुर15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मंडी में पड़ी है मंदी
डीज़ल हुआ है लाल
ऐसे में,
मोह भंग
हो रहा खेतों से
कृषक हुए बदहाल।
कैसे देश होगा
ख़ुशहाल!
कुआँ प्यासा
खेत प्यासा
बादल हैं कंगाल
देता झूठी दिलासा
राजा
प्रजाको नहीं है मलाल।
ऐसे में,
मोह भंग
हो रहा खेतों से
कृषक हुए बदहाल।
कैसे देश होगा
ख़ुशहाल!
बुढ़िया गईं हैं फ़सलें सारी
क़र्ज़े की रक़में हुईं हैं
जवान
सूख गई हैं जेबें सारी
दिवाली न होली आई
सूखी रही गुलाल।
ऐसे में,
मोह भंग
हो रहा खेतों से
कृषक हुए बदहाल।
कैसे देश होगा
ख़ुशहाल!
हार के छोड़ा
साथ हलों का
गेंती फावड़े
मित्र बनाये
दिल का आँगन बेच
शहरों में बसने आये
कमाये बग़िया के निवाले
पूछे कोई तो हाल
नंगे बदन घूम रहा
इस माटी का लाल।
ऐसे में,
मोह भंग
हो रहा खेतों से
कृषक हुए बदहाल।
कैसे देश होगा
ख़ुशहाल!
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