प्यार का तोहफ़ा
कथा साहित्य | कहानी वैद्यनाथ उपाध्याय1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
लैम्प जलाने की कोशिश कर रहा था। सुलगाने के लिए लैम्प की बाती को ऊपर उठाता है। अचानक आग ऊपर तक पहुँचकर सिलिंग में सुलग जाती है। आग बुझाने के लिए पानी ढूँढ़ता है। पानी मिला नहीं। बालू छिड़कता है। इतने में भी आग बुझी नहीं। तब वह माँ को जगाने के लिए दौड़ता है। ठीक उसी वक़्त वह चौंककर नींद से जाग जाता है। वह उठकर बैठ जाता है। यह क्या देखा है उसने? रात के साढ़े बारह बजे थे। यह सुलग रहा घर उसका गाँव का घर था। माँ भी कब को गुज़र चुकी थी।
घर के बेटे ने मोबाइल गेम खेलकर ढेरों रुपए बर्बाद करा दिए। मन में इसी की पीड़ा सुलग रही थी। क्या इसी का यह प्रतिफलन हो सकता है? उसने सोचा लेकिन इस तरह की बात को समझ पाना उसके वश की बात नहीं थी। पत्नी ने इन सब बर्बादी के लिए उस पर ही दोष मढ़ दिया था। ‘वह कहती है तो हो भी सकता है,’ उसने सोचा। गौतम बुद्ध भी कहते हैं जो भी हो रहा है उसके लिए तू ही दोषी है। यह सब किसी और ने नहीं तूने ही किया है।
सुबह जल्दी जागने की आदत है। मन में विचित्र क़िस्म के भाव उमड़ रहे थे। उसे लगा जीवन कहीं आकर दलदल में फँस गया है। उसे विद्यालय जाना था। वहाँ से फिर शिक्षकों के सभा में जाना था। वह चला गया। विद्यालय पहुँचते ही पेट में दर्द होने लगा। कुछ देर बाद बाइक शिक्षक मित्र के घर में रख दोनों सभा के लिए किराए पर ली गाड़ी में सवार हुए। मन खिन्न था। तरह तरह के विचार मन में कौंध रहे थे। पेट में हल्का दर्द हो रहा था। गाड़ी नदी के ऊपर बनी पुल से होकर गुज़र रही थी। उसे काफ़ी सुस्ती आने लगी। कुछ देर बाद उसे लगा अब उससे रहा नहीं जाएगा। सोने के लिए जगह देखने लगा। गाड़ी में और भी लोग बैठे थे। कुछ आगे सरक कर सीट में लेटने की कोशिश की। उसे लगा अब सभा में नहीं रह सकेगा। अब घर भी लौट नहीं पाएगा। उसका यह आख़री वक़्त आ गया है, उसे लगने लगा। किसी के घर में जाकर बिस्तर पर लेटने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। उसने यह बात किसी से नहीं कही। कहता तो लोगों में अफ़रा-तफ़री मच गई होती। उसके बाद अस्पताल और आगे बहुत कुछ हो गया होता। कुछ देर बाद पसीने से तर बतर हो गया। हवा चल रही थी। लेकिन उसके भीतर से ही यह कुछ हो रहा था।
उसने सोचा पत्नी कहती है—उसके साथ आने के कारण ही उसको जीवन में कभी सुख नहीं मिला। जीवन में आई सब घटनाओं के लिए उसे ही ज़िम्मेवार ठहराती है। उसको लगा अब उसके चले जाने से उसको भी एक खुला आकाश मिल जाएगा। उसके साथ जो घुटन महसूस करती है, वह भी नहीं रहेगी। उसके सेवानिवृत्त होने की उमर तक उसको मासिक वेतन मिलेगा। उसके बाद पेंशन मिलेगी। बीमा से ढेरों रक़म मिलेगी। भविष्यनिधि के जमा रक़म मिलेगी। इतना सब पाकर उसको अच्छा ही लगेगा। उसने सोचा और विषाद से भर आया।
कुछ देर बाद उसकी स्थिति सुधरी। गाड़ी से बाहर आया। विद्यालय के कमरे में जाकर बैठ गया। पानी पीया। एक मित्र ने चाय की पेशकश की तो अनमने ही चाय पीने के लिए दुकान की ओर निकल गया। चाय पी। इतने में भी पेट में दर्द रुका नहीं। आज क्या हो गया है? उसे मालूम नहीं है। सभा की ओर चलने लगा। सभा में वक्तव्य भी दिया। वहाँ से लौटकर आया। उसको लगा बाइक लेकर जाना सम्भव नहीं भी हो सकता है। किसी तरह बाइक निकाला और चलाकर घर की ओर निकल पड़ा। बीच में बाइक में तेल डालना था। उसको लगा एक बार रुक गया तो हो सकता है घर पहुँच नहीं पाएगा। यह सोचकर तेल डिपो पर रुके बग़ैर सीधे घर चला गया। घर पहुँच कर सीधे बिस्तर पर लेट गया। दिन भर की घटनाओं को याद कर खिन्न हो गया। उसे लगता है अब ज़्यादा दिन वह जी नहीं पाएगा।
उसका बचपन वीभत्स ग़रीबी में बीता। आधुनिक सुख सुविधाओं से दूर एक पिछड़े गाँव में उसका जन्म हुआ। परिवार में दो जून की रोटी की ही समस्या थी। बुनियादी आवश्यकताओं के लिए हमेशा जूझना पड़ता था। विद्यालय जाना उसको नसीब नहीं हुआ था। गाय चराते वक़्त एक दिन पड़ोस के विद्यालय के मास्टर से उसने पढ़ने की इच्छा जतायी। मास्टर ने उसके पिताजी को मनाया। तब जाकर उसे विद्यालय भेजा गया। विद्यालय जाने के रास्ते भी बहुत ख़राब थे। किसी तरह विद्यालय पहुँचता था।
प्राथमिक शिक्षा समाप्त कर माध्यमिक विद्यालय में दाख़िला लिया। घर में खाने को नहीं था वह पढ़-लिख कर भी क्या करेगा? इस तरह का विचार मन को खाता रहता था। दिन में वर्षा होने पर नदी में बाढ़ आ जाती थी। तब घर आना काफ़ी मुश्किल हो जाता था। विद्यालय से घर आकर साग-सब्ज़ी बेचने बाज़ार जाना पड़ता था। इसी तरह घर का ख़र्चा चलाना पड़ता था। उन दिनों का स्मरण कर उसका मन काँप उठता है। पढ़ने के लिए किताब ख़रीद नहीं पाता था। कक्षा नौ और दस में उसे विद्यालय जाने का कोई समय ही नहीं मिला। पिताजी ने लोगों का विश्वास कर ज़मीन के काग़ज़ात नहीं बनवाए थे। अब वह आदमी कहने लगा था कि ज़मीन ऐसे ही खेती करने को दी थी। कोर्ट में मुक़द्दमा चलने लगा। कोर्ट में अक़्सर उसे ही जाना पड़ता था। यौवन की दहलीज़ तक पहुँचते ही एक लड़की का दिल उस पर आ गया। वह भी उसको जी-जान से प्यार करता था। विवाह हो गया। उसी साल बाढ़ गाँव का खेत बहाकर ले गयी। शाम के वक़्त वह उस खेत को देखता था। सब ओर बालू ही बालू। वह देखता था उसके सपने सब उसी बालू में धँस गए हैं। उसे लगता था यह सब कुछ दुस्वप्न की भाँति टल जाए तो अच्छा है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ। वह पढ़-लिख कर ग्रेजुएट हो गया। काफ़ी मशक़्क़त के बाद विद्यालय में उसको नौकरी मिली।
किसी तरह उसका गुज़ारा चलने लगा। उसने सोचा समाज में महिलाओं को भी समान अधिकार मिलना चाहिए। उसने पत्नी को समाज के बंधनों से मुक्त स्वतंत्र छोड़ दिया। पत्नी ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी फिर भी समाज में नेतृत्व देने में सक्षम थी। वह सोचता था, घर में ढेरों किताबें हैं। पत्नी भी पढ़ेगी। लेकिन उसको कभी किताब पढ़ते हुए उसने नहीं देखा। अक़्सर उसके टेबुल में रखी किताबों को इधर-उधर हटा देती थी। जब भी वह किसी पुस्तक को ढूँढ़ता था तब वह मिलती ही नहीं थी। किसी विषय पर कुछ लिख रहा होता था उसके विचार भी बदल जाते थे। लिखना सम्भव नहीं होता था। तब कुछ अजीब तरह के भाव उमड़ते थे मन में।
जब वह ग़रीब था। आर्थिक तंगी के कारण कुछ निर्णय नहीं कर पाता था। तब उसकी पत्नी कहती थी—मैं मज़दूरी कर तुमको पालूँगी। तब उसको लगता था पत्नी तो हिम्मतवाली है। अब वह नौकरी करता है। समाज में कुछ प्रतिष्ठा भी है। नौकरी का वेतन मिलता है। अब आर्थिक तंगी भी कुछ टल गयी है। दो बेटियाँ थी। दोनों ने अपना घर बसा लिया है। अब आकर पत्नी अपनी ऐंठ जमाने लगी है। अक़्सर चिट्ठी लिखकर उसके टेबल पर रख देती है। उसमें सब कुछ ग़लती के लिए उसको दोषी ठहराती है। ‘उसके साथ आने के कारण उसका जीवन नर्क बन गया है’ इस तरह कह कर उसको दुखी करती रहती है। विद्यालय से थका-हारा घर लौटता है और यह सब देखकर उसका मन खौल उठता है। लेकिन वह चुपचाप सहता आया है।
आज इतने सालों के अनुभव से उसे लगता है कि जीवन में घटनेवाली घटनाओं पर आदमी का कोई वश नहीं होता। माँ-बाप दोनों गुज़र गए। दो भाई थे। दोनों की शादी कर दी। दोनों के दो-दो बेटे हैं। दोनों भाइयों को स्कूल में भरती करा दिया था। दोनों को शहर के विद्यालयों में पढ़ाया था। ख़ुद को कभी ऐसा सुयोग मिला नहीं था। उनको शिक्षित करने का प्रयास किया। लेकिन भाइयों ने पढ़ने में रुचि नहीं दिखायी। अब भाइयों के बेटों की बारी है। उन्हें भी पढ़ाने के लिए अपने पास रखा है। वही बड़े भतीजे ने माँ का सारा पैसा एकाउंट से मोबाइल गेम खेलकर ख़ाली कर दिया था। इन बातों से मन में दुख होता है। फिर भी वह सोचता है अपना तो नुक़्सान हो गया। अब वह सुधर जाए तो अच्छा है। रात-दिन उसको सुधारने के प्रयत्न में लगा रहता है।
अब जीवन की उल्टी यात्रा शुरू हो गई है। पत्नी भी अब उसे अपमानित करने में लगी रहती है। संसार में सब कुछ बदलता रहता है। परिस्थिति बदलते ही लोगों का रवैया बदलता है। अपने लोग पराए हो जाते हैं। जीवन के इस पड़ाव तक आकर बड़े-बड़े महलों में रहनेवाले धनाढ्य लोगों की तड़पन को नज़दीक से देखा है। इसलिए वह बड़प्पन की धारणा नहीं रखता है।
अब बची-खुची जो उम्र है वह दूसरों की सेवा में लगा देने का विचार रखता है। वह लेखक है। वह कविता, कहानी आदि लिखता रहता है। मन में विभिन्न क़िस्म के भाव उमड़ते रहते हैं। ज़्यादातर समय वह विचारमग्न रहता है। इस पर उसकी पत्नी को चिढ़ होती है। आज तक, उसको किस तरह मनाए, यह समझ नहीं पाया है। आज आकर वह किस तरह बदल गयी है। हर बात पर उसे टोकती रहती है।
वह सोचता है किसी ने कहा था—अच्छी पत्नी मिली तो संसार सुखमय बितेगा। अगर दुष्ट पत्नी मिली तो संसार से वैराग्य जन्मेगा। दोनों स्थिति में लाभ ही लाभ है। उसे भी अब संसार से वैराग्य होने लगा है। जितने दिन जीएगा तब तक अपनी ओर किसी का नुक़्सान नहीं करेगा। भटके हुए लोगों को सही रास्ते पर लाने का प्रयास करेगा। उसने जीवन में इसी को व्रत बना लिया है।
जीवन में जिसको जितना तवज्जोह दी उसने उतनी ही उसे चोट पहुँचायी है। एक मित्र को लेखकीय उत्तरण के लिए सहयोग किया। परामर्श दिया। उसी ने उसको नीचा दिखाने का भरसक प्रयास किया। भतीजे को पढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया। उसी ने माँ का एकाउंट ख़ाली कर दिया। पत्नी को जीवन में स्वतंत्र रूप से काम करने दिया। वही आज उसको हर वक़्त चोट पहुँचाती रहती है। इन बातों से मन खिन्न रहता है। अपने मित्रों को पुस्तकें पढ़ने के लिए देता है। लेकिन वे एक बार पुस्तक ले जाकर फिर लौटाने का नाम ही नहीं लेते। कुछ ने तो पुस्तकें खो जाने की बात कही। कुछ ने ले जाकर कभी लौटाई नहीं। उन मित्रों को वह अपना शुभेच्छुक कहे या और कुछ? वह सोच नहीं पाता है।
लोगों के स्वार्थीपन, दिखावटीपन, ईर्ष्यालुपन आदि को देख कर उपलब्धि पाने बाद भी अब जीवन कुछ फीका-फीका सा लगने लगा है। आज इतने सालों में वह देखता है संसार बदल गया है। उसका शहर बदल गया है। लोगों के रवैए बदल गए। वह देखता है वह ख़ुद कुछ भी नहीं बदला है।
वह अपने विद्यालय के बच्चों को देखता है। उनके माँ-बाप के स्थिति को देखता है। तब उसे वही उसका ग़रीबी से जूझता बचपन याद आता है। लोग अब भी दो जून की रोटी के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं। बुनियादी आवश्यकता ही उनके लिए समस्या है। फिर भी लोग कहते हैं समाज बहुत आगे बढ़ गया है।
दैनन्दिन घट रही घटनाओं पर विचार करता है। उसके विचार उलझते ही जाते हैं। वह पास की खिड़की खोलता है। दूर तक देखता है। कहीं कुछ हो रहा है क्या? दूर तक पसरी लम्बी सड़क है। उसमें लोग आ जा रहे हैं। उससे आगे खुला आकाश है। आकाश में बादल उड़ रहे हैं। सब कुछ चल रहा है। बाहर कोई समस्या नहीं थी। समस्या तो उसके मन में थी।
कोई भी किसी भी स्थिति में क्यों न हो उसको उसी में आदत पड़ जाती है। उसको भी अब पीड़ाओं को सहने की आदत पड़ गयी है। दुख आदमी को जीने का सबक़ देकर जाता है। उसने भी भतीजे के मोबाइल गेम खेलकर रुपए बर्बाद करने की पीड़ा से कहानी लिखना आरम्भ कर दिया है। उसके बाद उसका मन अब लगातार कहानी की ओर झुक गया है। कभी कभी उसे लगता है क़ुदरत ने उसके लिए यह सब कर डाला है।
आज सुबह भी उसका पेट दर्द कर रहा था। नहा-धोकर वह प्राणायाम करता था। आज नहीं किया। पेट के दर्द ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। उसे लगा जीवन दुख, दर्द, पीड़ा इन्हीं के बीच गुज़ारना होगा। कुछ देर तक सोया। फिर भी हल्का सा दर्द छूटा नहीं। अत्यंत दुर्बल महसूस होने लगा। आज विद्यालय नहीं गया। अपने कमरे में बैठे-बैठे न जाने क्या-क्या सोचता रहा। इसी बीच उसका मन पक्षाघातग्रस्त सञ्जय की बात याद करता है। शरीर का आधा भाग अचल है। सब कुछ दूसरों पर निर्भर जीवन बिताने को मजबूर है। आज कई साल हो गए। वह कहता है वह इसी तरह जीने का आदी हो चुका है। अब उसके मन में अपने शारिरीक अशक्तता पर दुख नहीं है। तब वह सोचता है, आदमी जहाँ जिस स्थिति में है वहाँ कभी सुखी नहीं है। इसी तरह जीने का आदी हो जाता है।
उसको लगता है इस स्थिति में वह गुज़र जाता है तो उसको दुखी होने की कोई बात नहीं है। क्योंकि अब वह संसार से ऊब चुका है। उसके मित्र ने न जाने किन पीड़ाओं के कारण निर्जन जगह में पेड़ में झूलकर आत्महत्या की। जीवन में आदमी कितना अकेला होता है। वह सोचता है। उसके रहते पत्नी को लगता है कि कभी सुख नहीं मिला। उसके गुज़र जाने के बाद जब उसे सेवानिवृत्ति के उमर तक वेतन मिलेगा। उसके बाद फिर पेंशन मिलेगी। बीमा की रक़म मिलेगी। भविष्यनिधि की जमा रक़म मिलेगी। तब वह इसे क्या समझेगी प्यार का तोहफ़ा या और कुछ . . .?
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