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दबी हुई फाइल की कहानियों में मानवीय संवेदनाएँ

समीक्षित पुस्तक: दबी हुई फाइल (कहानी संग्रह)
लेखक: अंजना वर्मा
प्रकाशक: रूद्रादित्य प्रकाशन,
109, एच/आर/3-एन, ओपीएस नगर, कालिन्दीपुरम, प्रयागराज-211011
मूल्य: ₹195/-
पृष्ठ संख्या: 124

अंजना वर्मा वर्तमान साहित्य जगत की एक जानी पहचानी कवयित्री, गीतकार एवं एक सशक्त कथाकार हैं। दबी हुई फ़ाइल लेखिका की चौथी कहानी संग्रह के रूप में सामने आया है। इस में पन्द्रह कहानियाँ समावेशित की गई हैं। पुस्तक को पढ़कर ऐसा लगता है कि लेखिका सचमुच ही मानवीय अनुभूति को भलिभाँति समझती हैं और समाज को नोच-नोचकर खोखला करती बुराइयों के ख़िलाफ़ मानव मन मस्तिष्क और चेतना को जगाने के लिए लिखती हैं। उनकी कहानियों में हाशिए पर चले जाने को मजबूर लोगों की मजबूरियाँ, दुख-दर्द, आदि का सशक्त प्रतिफलन देखा जा सकता है। 

लेखिका मानती हैं कि कहानी मानव जीवन की अभिन्न सहचरी है। जहाँ तक मनुष्य की सोच और उसकी कल्पना है, वहाँ तक कहानी का विस्तार है। लेखिका ने माना है कि कविताओं की तरह कहानियाँ भी उनके अंतर्मन से जुड़ी होती हैं और जो भी बात उनकी संवेदनाओं के दायरे में समाती है, वह कहानी की विषयवस्तु बन जाती है। 

अंजना वर्मा मेरे लिए एक अजनबी हैं। उनसे मेरा परिचय उनकी कहानियों के ज़रिए है। उनकी कहानियों से पता चलता है कि लेखिका समाज की बुराइयों से काफ़ी चिंतित हैं। इसलिए उनकी कहानियों में बुराइयों के ख़िलाफ़ संघर्ष और अन्याय का विरोध का स्वर मुखरित होता है। इनकी कहानियों के मध्य एक गुणवान संवेदनशील लेखिका के रूप में उनकी सौम्य, शान्त चेहरा उभरता है। 

इस में संगृहीत कहानियों में सभी कहानियों में सशक्त संदेश है—समाज से बुराइयों को ख़त्म करने का। साथ ही समाज से किनारे किए लोगों के प्रति सहानुभूति और दया का भाव रखने की एक मंशा भी है। जीवन के विविध पहलुओं को लेखिका की क़लम का स्पर्श मिला है। सूक्ष्म से सूक्ष्मतर चीज़ों को अच्छी तरह से अभिव्यक्ति दी गई है।  

‘एक प्रेम कथा यह भी’ कहानी में आधुनिक प्रेमी प्रेमिका एवं विवाह से दूर रहकर मन बहलाने के लिए किसी के सान्निध्य में रहने से आधुनिक कहे जानेवाले लोगों के सोच-विचार और द्वन्द्व उभरकर आया है। स्वाती और निशांत दोनों प्रेमी प्रेमिका हैं। उन दोनों का प्रेम किसी से छुपा नहीं है। पर निशांत की अपनी बड़ी बहन लता की शादी नहीं हुई है इस बहाने से स्वाती से शादी नहीं करता है। मजबूरी में स्वाती को दूसरे व्यक्ति के संग विवाह करना पड़ता है। निशांत अमेरिका चला जाता है और वहीं कुलीग एलेन नाम की अपने सहकर्मी से शादी कर लेता है। फिर भी स्वाती और निशांत के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहता है। निशांत जैसे आधुनिक, नौकरी पेशा लोग भी “बड़ी बहन की शादी नहीं हुई है” के बहाने से शादी नहीं करते हैं। यह आज के समाज की सच्चाई है। किसी भी बहाने लड़कियों को इस तरह की समस्याओं से बार-बार गुज़रना पड़ता है और नुक़्सान भी लड़कियों को ही एकतरफ़ा उठाना पड़ता है। 

‘फिर कभी बताऊँगा’ कहानी रद्दी पेपर बेचनेवाले ग़रीब लड़के की ईमानदारी को उजागर करती है। निहारिका ने पुराने अख़बार रद्दीवाले लड़के को बेचे हैं। लड़का दूसरे दिन फिर उसके घर आ धमकता है। निहारिका लड़के को कहती हैं क्या पेपर रोज़-रोज़ निकलते हैं। लेकिन लड़का कुछ काग़ज़ात दिखाते हुए बोलता है—माँ जी ये ज़मीन के काग़ज़ात हैं। उसी रद्दी काग़ज़ों में मिला है। यह देखकर निहारिका का मन पसीज जाता है। लड़के के विषय में वह पूछने लगती है पर वह ‘फिर बताऊँगा’ यह कहकर चला जाता है। 

‘सिमरन आंटी’ कहानी में बच्चों के पढ़-लिखकर बड़े हो जाने पर विदेश में सपनों की दुनिया में खो जाने एवं उन्हें जन्म देकर पाल-पोसकर बड़े करनेवाले माँ-बाप की बदहाल स्थिति का मार्मिक चित्रण है। 

‘रेत का तालाब’ कहानी संभ्रांत लोगों की गुज़रती उम्र में कैसी बदहाल स्थिति होती है और उन्हें किसी असहाय लोग भी किस तरह उनके लिए जीवन जीने का संबल बन सकते हैं। इसका एक जीवंत चित्रण मिलता है। 

‘सवाल एक चने की दाल का’ कहानी कोरोना काल की भयावह स्थिति से गुज़रते ग़रीब परिवार के हालत को उजागर करती है। ‘दिलावर’ कहानी में दिलावर डकैत होकर भी परोपकारी लोगों के प्रति बुरी नज़र नहीं रखता है। 

‘दबी हुई फाइल’—जो कि पुस्तक का शीर्षक भी है, में बलात्कार से पीड़ित एक युवती की आपबीती है। जिसमें समाज के प्रभावशाली लोगों के बेटे शामिल होते हैं और युवती के घर के लोग भी समाज में बदनामी एवं सुरक्षा का ख़तरा दिखाकर विषय को दबाए रखना चाहते हैं। संगीता और उसकी बहन सुनीता साहस जुटाकर पुलिस में रपट लिखवाते हैं पर इसे वहीं दफ़न कर दिया जाता है। ‘लाल गुब्बारा’—गुब्बारा खेलनेवाले बच्चे की आपबीती है। ‘मुसाफ़िर’—कहानी में मनुष्येतर प्राणी भी प्यार का भूखा होता है। कहानीकार ने एक कुत्ते के माध्यम से इस बात को उजागर किया है। ‘कैसे हो चंदन’—लॉकडाउन की मार से पीड़ित एक कामगार परिवार की पीड़ा की कहानी है। अभाव और नासमझी के चलते पति और पत्नी दोनों में टकराव हो जाता है। ‘एक फोन काल’—कहानी अकेलापन महसुस करती, एक बूढ़ी औरत की मनोदशा को उजागर करती है। हज़ारों किलोमीटर दूर बसी ईशा को उसकी बड़ी माँ फोन कर मन बहलाती हैं। वह फोन काटना भूल जाती हैं और घर की कहा-सुनी ईशा के कानों तक पहुँच जाती है। 

‘बिंदिया वाला मुखड़ा’—दैनिक रोज़गार से जुड़े लोगों के पारिवारिक मनमुटाव की कहानी है। काम न करें तो परिवार चलता नहीं और काम पर जाएँ तो घर का माहौल ख़राब होता है। ऐसी कशमकश की कहानी है। ‘जवाब’—यह बच्चा न जननेवाली औरत की पीड़ा की कहानी है। एक औरत को उसका पति एक निर्जन स्थान पर छोड़कर चला जाता है और किसी अजनबी के घर जाकर वह पनाह लेने को मजबूर हो जाती है। ‘इन्द्रजाल’—दो अलग-अलग स्थान में अलग-अलग नौकरी पेशे से जुड़े पति और पत्नी की कहानी है। मोबाइल और इंटरनेट की व्यस्तता से उनके दाम्पत्य प्रेम की मिठास भी औपचारिकता बनकर रह गई है। ‘टूटे हुए कंधे’—लॉकडाउन की विपदा को मार्मिक ढंग से पेश करती कहानी है। अतुल के पिता कोविड से गुज़र गए और उसकी पत्नी मिता कोविडग्रस्त है। दो बच्चे हर्षित और प्रिया दोनों ख़ौफ़ज़दा हैं कि आगे क्या होगा? कोविड से पिता की मौत के बाद वह पिता के अर्थी को कंधा देने से भी परहेज़ करता है। लॉकडाउन के समय की स्थिति को बख़ूबी उभारा गया है इस अंतिम कहानी में। 

अंजना वर्मा की कहानियाँ पाठकों के अंतर्मन को झकझोरने का काम करती हैं। वह काफ़ी मँझी हुई लेखिका हैं। कहानियाँ सशक्त सामाजिक संदेश लिए हुए हैं। मैंने कहानियों को दोबारा पढ़ा। फिर भी पढ़ने की ललक अब भी बनी हुई है। लेखिका को अंतर्मन से बधाई देता हूँ। 


वैद्यनाथ उपाध्याय- खांखलाबारी, उदालगुडी-784509, बीटीआर, असम। 7002580050(M)

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