अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

रिश्तों का मोल

देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था जब कोई थाना परिसर, पंचायत में तब्दील हो गया था। और ऐतिहासिक बनने जा रही इस महापंचायत में जनता के चुने हुए जन-प्रतिनिधि की जगह न्याय की कुर्सी पर क़ानून का दारोगा थानेदार समीर मलिक, पंच परमेश्वर का अलगू चौधरी के रूप में विराजमान थे। पूरा थाना परिसर शादी की मंडप की तरह सजा हुआ था और ज़मीन पर घास के ऊपर दरी बिछा दी गई थी। कौतूहल-कोलाहल से थाना परिसर गुंजायमान्‌ था। देखने-जानने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। सोशल मीडिया पर लाइव टेलीकास्ट होने की बात ने मामले को रोचक और गंभीर बना दिया था। दूर से ही थाना परिसर मेला सा लग रहा था। देखना था वक़्त किसके साथ खड़ा होता है और कौन ठिसुआ कर जाता है। वक़्त ने बहुत बड़ा खेल रचा था। इसके साथ ही कई ज़िंदगियों का भविष्य दाँव पर लग गया था। 

प्रेम की कोख से जन्मे इस अनोखे और ऐतिहासिक फ़ैसले के गवाह, गाँव से लेकर शहर तक के लोग होने जा रहे थे। किसी थाने में इस तरह की पंचायत होते आज से पहले न किसी ने देखी और न सुनी था। लोगों की उत्सुकता अपने चरम पर थी। हर कोई फ़ैसले को लेकर उत्सुक था। 

इन सबसे रूबरू होता शेखर राजन अपने दोनों मासूम बच्चों के साथ थाने के बड़े बाबू के ठीक सामने दरी पर कुछ सोचता, कुछ याद करता बैठा हुआ था। वहीं उसके बायीं तरफ़ शेखर की बूढ़ी माँ तारा देवी जाने किस दुविधा में डूबी नज़र आ रही थी। 

उससे चार क़दम दूरी पर रेणु राजन तनाव की चादर ओढ़े आत्ममंथन में डूबी हुई नज़र आ रही थी। 

रेणु जब से आई थी उसने एक बार भी शेखर और बच्चों की तरफ़ नज़रें उठा कर नहीं देखा था। बच्चों ने भी जैसे माँ को भुला दिया था। अभी तक एक बार भी उन्होंने माँ की ओर देखा-देखी नहीं की थी। कल तक एक घर में और एक छत के नीचे रहते थे। आज सभी एक दूसरे के लिए अजनबी बने हुए थे। घटनाक्रम ने सबको चक्कर में डाल दिया था। 

शेखर की बाँहों में दोनों बच्चे दुबके से बैठे थे और ख़ुद शेखर जीवन के सात सालों को याद करने बैठ गया था जो उसने रेणु के साथ बिताए। एक सप्तरंगी जीवन! जिसमें जीने का जुनून सवार था! ढेरों सपने थे। एक दम सिनेमा जैसा . . .! वो पल और वो मुलाक़ात! जिसे मरते दम तक भुलाया नहीं जा सकता। ऐसा जान पड़ता जैसे सब कुछ कल की ही बात हो . . .! 

कपड़ों की ख़रीदारी के बीच, अचानक से मॉल में रेणु और राजन का टकराना, फिर दोनों का एक दूसरे को “सॉरी” बोलना, मुलाक़ात का सिलसिला शुरू होना! फ़ोन नंबरों का आदान-प्रदान! फिर देर रात तक फ़ोन पर बातें करना! कॉफ़ी शॉप में शाम को दोनों का चाय पीना। फिर “कल मिलते हैं” कह अपने अपने घर जाना और फिर एक दिन “चलो कहीं बाहर घूमने चलते हैं” शेखर राजन का प्रस्ताव आना।

“कहाँ चलोगे . . .?” रेणु साहू का जिज्ञासा भरा सवाल उठना।

“जहाँ तुम्हें पसंद हो, पार्क . . . हॉल फ़ॉल!” 

“एक-एक दिन सभी जगह चल!” और रेणु खिलखिला उठी थी। 

और अगली रविवारीय छुट्टी में बिरसा जैविक उद्यान ओर माँझी पार्क पहुँच जाना! घंटों बाँहों में बाँहें डाल दोनों का पार्क में मस्ती करना। हिरणों-सी रेणु का कुलाँचे भरना कितना रोमांचक और कितना हसीन पल था। लौटने पर—

“अच्छा तो हम चलते हैं!” 

“फिर कब मिलोगे . . .!” 

अगले वीकेंड में “हुंडरू फ़ॉल” की घोषणा कर शाम होने के पूर्व अपने अपने घर पहुँच जाना! सब कुछ पवित्र और मिठास से भर जाना। 

हुंडरू फ़ॉल! प्रकृति का अद्भुत नज़ारा! मचलते जवां दिलों को जहाँ मिलता है सहारा! वीडियोग्राफी! फोटोग्राफी कर युवक-युवतियाँ अपनी भावनाओं को क़ैद कर लौटते हैं। एक यादगार पल लिए। 

“हम शादी कब करेंगे—अब रहा नहीं जाता है यार . . .!” हुंडरू फ़ॉल से निकलने के पूर्व युवाओं की भीड़ में ही रेणु साहू शेखर की गर्दन पर बाँहें डाल झूल गई थी।

“जब तुम कहोगी!” शेखर ने रेणु को ऊपर उठा लिया था

“हिप! हिप! हुर्रे!” उपस्थित भीड़ ने नारे बुलंद किए थे। 

“आज! अभी! यहीं!”

“और तुम्हारे माता-पिता! भाई बहन! 

“जब मैं राज़ी तो क्या करे माँ-पिता जी!”

“कर लो यार! गोल्डन चांस मिस मत करो!” भीड़ ने फिर आवाज़ दी।

“पर किसी को तो साक्षी होना चाहिए!” 

“ऊपर देखो!” रेणु सीढ़ियों की ओर देखते हुए कहा।

“शिव मंदिर . . . !” 

“शिव बाबा को साक्षी मानकर कहता हूँ। जब तक मेरी साँसें चलेंगी। कभी एक पल भी तुम्हें अपने से दूर नहीं रखूँगा। कभी निराश होने नहीं दूँगा . . .!” और शेखर राजन ने रेणु साहू के गले माला डाल दी।

“बाबा भोलेनाथ हमें माफ़ करें, माता-पिता के अनुमति बिना हम दोनों शादी बंधन में बँध रहे हैं। भगवान के बिना भक्त रह सकते हैं लेकिन मोबाइल के बिना आदमी आज एक पल भी नहीं रह सकता है, आज मैं इसी मोबाइल की क़सम खाकर कहती हूँ—तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकूँगी . . .!” और रेणु ने दूसरी माला शेखर के गले में डाल, ख़ुद उससे लिपट गई। 

शिव मंदिर से बाहर दोनों ने क़दम रखे तो रेणु की माँग सिन्दूर की लालिमा से जगमगा रही थी! 

“अब . . .?” शेखर ने पूछा।

“सीधे माँ की चरणों में . . .!” 

शेखर ने सीधे माँ को फ़ोन कर, सारी बातें बता दी। माँ ने इसकी सूचना बग़ल गाँव में बिहायी बेटी को दे दी थी। 

शाम को माँ-बेटी ने शेखर रेणु का स्वागत बड़ी सादगी और सलीक़े से किया। रेणु को लगा नहीं कि वह ससुराल आई है। लगा मॉल से काम कर घर आई है। 

तारा देवी ने तब कहा था, “इसकी हर तरह की हरकतें आज तक मैंने सहीं अब तुम आ गयी, मुझे छुट्टी दो!” और तारा देवी उन दोनों के सर सहलाने लगी थी। रेणु तारा देवी की चरणों में झुक गई, “आप जैसी माँ पाकर मैं धन्य हो गई!” 

“भाभी मैं बग़ल के गाँव में ही हूँ। भूल न जाना . . .!” कह बबीता रेणु से लिपट गई थी। 

रविवार को शेखर ने मित्र भोज का आयोजन रखा। सगे रिश्तेदारों के अलावे हार्डवेयर कंपनी में शेखर के साथ काम करने वाले और मॉल में रेणु के साथ काम करने वाली उनकी कई सहेलियाँ शामिल हुईं। सबों ने एक स्वर में नव प्रेमी जोड़े को ढेरों शुभकामनाएँ दी और ख़ुशी-ख़ुशी चलते बने। रेणु के माता-पिता अनुपस्थित रहे! पर रेणु मायूस नहीं हुई। 

सप्ताह दिन बाद दोनों ने काम ज्वाइन कर लिए। दोनों एक ही शहर में जॉब कर रहे थे। सो आने-जाने का भी कोई प्रॉब्लम नहीं! शेखर रेणु को सुबह मॉल में छोड़ जाता और शाम को लौटते समय पिकअप कर लेता। दोनों की ज़िन्दगी चल पड़ी। दोनों ख़ुश! दोनों मस्त! साल बाद एक प्यारा सा बेटा हुआ। नाम रखा दीपक! घर में उजियारा छा गया। तारा देवी को एक खिलौना मिल गया। दिन भर दीपक को लोरी सुनाती रहती थी। चलती का नाम गाड़ी। दौड़ती का नाम ज़िन्दगी! आज के युवाओं की फ़ीलिंग्स! शादी के चौथे साल में रेणु ने एक बेटी को जन्म दिया। नाम “रूपा” रखा गया। उधर रेणु का प्रमोशन हो गया। सेल्स गर्ल से “सेल्स मैनेजर” बन गई थी। उस दिन घर में एक पार्टी रखी गई थी। खाने-पीने की चीज़ें मौजूद थीं। दोस्तों ने ख़ूब लुत्फ़ उठाये। और चलते बने। देर रात शेखर ने रेणु से कहा, “रेणु तुम मुझे न मिलती तो पता नहीं मेरे जीवन का ठौर-ठिकाना कैसा रहता। मेरी ज़िन्दगी का रंग-रूप किस हालत में होता! तुमने मेरे घर को स्वर्ग बना दिया है। आई एम वेरी हैप्पी रेणु . . .!” 

“तुमसे मिलकर ही मैंने जीना सीखा शेखर! आई लव यू . . . शेखू!” 

और फिर अनचाहे गर्भ की तरह वो मनहूस घड़ी आई। जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी! जिसने मानव जीवन में एक जलजला सा ला दिया। मानव निर्मित उस विपदा के आगे बड़े-बड़े भगवान बौने साबित हुए और अपने अपने घरों में छिप गए या फिर छिपा दिए गए—दरवाज़े में ताले डाल दिए गए थे। परीक्षा की इस घड़ी में हताशा में डूबे मनुष्यों ने हिम्मत से अपने-अपने कुनबे को बचाने वास्ते हाथ पैर मारना शुरू कर दिया था। कई मानव—महामानव के रूप में भी नज़र आए। 

किसी ने सोचा न था कि अचानक से दुनिया में ऐसी आफ़त आ जाएगी। देखते-देखते करोना का एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेगा। लेकिन करोना ने विश्व में हाहाकार मचा दिया था। इससे भारत भी अछूता न रहा और जब भारत अछूता न रह सका तो पटेल नगर का भेडमुका चौक कैसे अछूता रह पाता? 

करोना की बढ़ती लहर देख केन्द्रीय सरकार ने आनन-फ़ानन में “लॉक डाउन” की घोषणा कर दी। जो जहाँ थे वहीं फँस गए। कल कारखानों में ताले डाल दिए गए और मज़दूर कर्मचारियों को सड़क पर छोड़ दिया। हॉल मॉल फ़ॉल! सब बंद। कारखाने बंद और मज़दूर सड़क पर। नौकरियाँ गयीं और पाबंदियाँ बढ़ गईं। सड़क के मज़दूर पैदल घर की ओर निकल पड़े। बस में जगह न मिले तो बस की छत पर चढ़ने लगे। रेल बंद तो लोग रेल की पटरियों पर चलने लगे—कुचले जाने लगे जैसे कीड़े-मकोड़े केंचुए कुचले जाते हैं . . . बेकार लोग घर में बैठे-बैठे बीमार पड़ने लगे। पति-पत्नी में तकरार बढ़ गयी। हर घर के राशन दाल में कंकड़ बढ़ गए और चूल्हे हिलने लगे थे। 

शेखर राजन की नौकरी गई और रेणु का मॉल बंद हो गया। घर में तनाव-घुटन का माहौल! खीझ की शुरूआत! सब घरों की एक ही हालात! सब एक-दूसरे को बोझ समझने लगे थे। शेखर के घर में भी छिन्न-भिन्न शुरू हो गया था। प्यार सिसकने लगा था—दूरियाँ बढ़ने लगी थीं और बच्चे दुलार को तरसने लगे थे। 

छह माह में ही मन में छह हज़ार छेद हो चुके थे। भात पेट की भूख मिटा देता पर तन की भूख! वो स्रोत वो तालाब ही जैसे सूख गया था। जो कभी दोनों के लिए समंदर हुआ करते थे। दिन महीने बीते। जीवन पटरी पर लौटी। फिर लोग रोटी रोज़गार में निकल पड़े। 

सरकार खुल गई! दुकान मॉल खुल गया परन्तु शेखर को नौकरी वापस न मिली। सुबह शेखर रेणु को मॉल तक छोड़ जाता और ख़ुद जॉब की तलाश में निकल जाता पर बंद के छह माह में ही बहुत कुछ छिन्न-भिन्न हो चुका था। जॉब मिलना आसान न था। प्राइवेट जॉब और प्राइवेट लाइफ़ पार्टनर कभी टिकाऊ नहीं होते। शाम को घर लौटता तो चेहरे पर थकान और हताशा का सीमेंट-गारा का लेप चढ़ा सा होता। कभी खाता कभी बिना खाए चुपचाप सो जाता! 

इसी बीच, सुहागिनों का वो पर्व आ गया। कहा जाता है कि इसे करने से पतियों के प्राण आयु लम्बी हो जाती है—पति सत्यवान बन जाता है! अरे वही सावित्री वट वृक्ष पूजा! 

शादी के बाद हर साल इस दिन शेखर रेणु को साड़ी लाकर देता था। इस वर्ष रेणु साड़ी ख़ुद लेती आई थी। दूसरे दिन शाम को रेणु पूजा कर लौटी तो शेखर घर में नहीं था। जॉब को लेकर वह किसी दोस्त से मिलने चला गया था। देर रात को घर लौटा तो दरवाज़े पर माँ खड़ी थी। रेणु सो चुकी थी। 

और अगले ही दिन शेखर के जीवन में विस्फोट हो गया था। बहुत शातिर दिमाग़ की घटना घटी थी। जिस कारण थाना परिसर आज महापंचायत में तब्दील हो गई थी। 

शेखर सुबह रेणु को छोड़ने मॉल गया था। तभी रेणु बोली, “मैं आधार कार्ड लाना भूल गयी। उसकी ज़रूरत है! प्लीज़ ला दो . . .!” 
शेखर वापस घर लौटा। परन्तु उसे ओरीजनल आधार कार्ड घर में नहीं मिला। ज़िरोक्स लेकर जब वह दुबारा मॉल पहुँचा तो रेणु मॉल में नहीं मिली। पूछताछ से भी कुछ पता नहीं चला। उसे किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी। किडनैपिंग, बलात्कार और हत्याएँ! आजकल हर अख़बार भरा रहता है। नज़दीकी थाने में मामला दर्ज करा दिया गया। मॉल के सारे सीसीटीवी कैमरों को खंगाल कर पुलिस चली गई। रेणु कहाँ गयी, किसके साथ गयी किसी को कुछ पता नहीं। सप्ताह दिन तक पुलिस को कोई सुराग़ हाथ नहीं लगा। रामायण-गीता की क़समें खाकर लोग झूठ बोलते हैं। रेणु ने शिव बूढ़ा बाबा के मंदिर में मोबाइल की क़सम खाकर शेखर को पति स्वीकार किया था। एक दिन उसी मोबाइल ने पुलिस को सुराग़ दे दिया। उस दिन रात को दस बजे शेखर के मोबाइल पर रेणु का मैसेज घुसा “मुझे ढूँढ़ने की कोशिश मत करना। मैं तुम्हारे साथ ख़ुश नहीं थी। इसीलिए साथ छोड़ा। बच्चों का ख़्याल रखना . . .!” 

शेखर ने तत्काल इसकी सूचना पुलिस को दे दी। 

भोर मुहूर्त में “मन मयूर होटल” में छापा मारा गया। रेणु एक युवक के साथ बरामद कर ली गई। जब उन दोनों को पुलिस जीप में डाला जा रहा था तो रेणु ने कहा था, “सर! चाहें तो आप मुझे सीधे जेल भेज दीजिए या फिर थाने ले चलिए। लेकिन भगवान के लिए मुझे उस घर में मत भेजिए जिसे मैं छोड़ आई हूँ।”

पुलिस उन दोनों को सीधे थाने ले आई ‌‌‌‌और शेखर को भी थाने में आने को कह दिया गया था। सूचना अख़बार-मीडिया को भी दे दी गई थी। इस वक़्त मीडिया वाले लाइव टेलीकास्ट करने की तैयारी में था। 

आज के इस महापंचायत का मुखिया क़ानून के दारोगा थानेदार समीर मलिक ने एक बार थाने के चारों ओर नज़रें दौड़ाईं फिर सामने की भीड़ से मुख़ातिब होते हुए कहा, “आज थाना परिसर में इस तरह की पंचायत क्यों बैठी है यह सब आप सबों को मालूम हो चुका होगा! रेणु राजन जो शेखर राजन की पत्नी है, सप्ताह दिन पहले शेखर को छोड़कर फ़रार हो गयी थी। ऐसा उसने क्यों किया सुनिएगा उसी के मुँह से। तो हम सीधे चलते है रेणु के पास . . .” 
समीर मलिक खड़े हो गये थे, “आपका नाम . . .?” रेणु से पूछा गया।

“रेणु राजन!” 

“बपौती नाम!”

“रेणु साहू . . .!” 

“आपने तो शेखर राजन के साथ प्रेम विवाह किया था फिर साथ क्यों छोड़ दिया आपने?” 

“मैं उसके साथ ख़ुश नहीं थी . . .!” 

“क्यों? उसमें अब क्या ख़राबी आ गई? क्या शराब पीने लगा है? मार-पीट करने लगा है या फिर . . .!” 

“ऐसा कोई ऐब नहीं है उनमें। बस मेरे लिए उसके पास समय नहीं था . . .!” 

“मतलब ’सेक्स’ को आपने जीवन का परम सुख मान लिया और छह साल के प्यार भरे दाम्पत्य जीवन को ठोकर मार चल दी। दोनों मासूम बच्चों पर इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा इस पर ज़रा भी नहींं सोचा—कैसी माँ हैं आप?” चुभती नज़रों से देखा रेणु राजन को और आगे कहा, “अभी आप क्या चाहती हैं . . .? शेखर के साथ रहेंगी या नये दोस्त रोहित शर्मा के साथ जायेंगी . . .?” 

रेणु का मुँह न खुल सका! 

“बोलिए। आज की यह पंचायत आप पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहींं करेगी। आप अपनी राय दीजिए आज की यह महापंचायत आपको आगे अपनी ज़िन्दगी चुनने का पूरा हक़ देती है . . .!” 

रेणु रोहित शर्मा की ओर देखने लगी थी। समीर मलिक ने इस बार सीधा हमला कर दिया, “उसे मत देखिए। वो आपके लिए नई पसंद हो सकती है लेकिन वो आपके जीवन के लिए एक सुन्दर धोखा है। आप इस शख़्स के बारे में क्या जानती हैं? दो माह पूर्व ही इसकी पुरानी गर्लफ्रेंड इसे लात मारकर चली गई। स्त्री बिना मर्द और गाय बिना सांड ज़्यादा दिन अकेले नहींं रह सकता है। रोहित शर्मा भी सांड की तरह अकेला छटपटाने लगा था और तब आपके पीछे पड़ गया। और आपने बहुत जल्द उसे अपने क़रीब आने का मौक़ा दे दिया—कॉफी हाउस में! रेणु जी आपने इसकी जॉब की पूरी जानकारी कर लेने के बाद ही इससे मित्रता बढ़ाई होगी। पर मेरी भी एक बात सुन लीजिए आप जिसे रोहित शर्मा का प्यार समझ रही हैं वह प्यार नहींं, सिर्फ़ टाइम पास है। हाँ रोहित शर्मा बैंक कर्मचारी है—सही है और अच्छी बात है, पर घर में इसकी शादी की बात चल रही है पता है आपको . . .?” 

“सर आप मुझे बदनाम कर रहे हैं,” रोहित शर्मा ने एतराज़ जताया। 

“चुप रहो वरना सीधे अंदर डाल दूँगा। मैं थोड़ा दूजे क़िस्म का थानेदार हूँ। इसके पहले जहाँ था वहाँ भी मैंने दो पंचैती की थी . . .!” 

“हाँ तो मुहतरमा . . . आप कुछ कहना चाहेंगी या अब भी इसके साथ जाना पसंद करेंगी . . .! फ़ैसला आपके हाथ में है।” 

“हाँ तो शेखर राजन! यही नाम है न आपका?” 

“जी हाँ सर!” शेखर उठ कर खड़ा हो गया। 

“आपकी पत्नी आपसे ख़ुश नहींं हैं। आप पहले की भाँति पत्नी को समय और शारीरिक सुख नहींं दे पा रहे थे। इसीलिए आपको छोड़कर चली गई। इस पर आपका क्या कहना है?” 

“सर, मैं जैसा पहले था आज भी वैसा ही हूँ। करोना की वजह मेरी जॉब चली गयी। इस कारण मैं थोड़ा अपसेट रहा। भाग-दौड़ में लगा रहा। परिवार को पूरा समय नहींं दे पा रहा था यह सच है! रेणु को मैंने कभी अपने से अलग नहींं समझा। अब जब वह मुझसे ख़ुश नहींं है की बात कही है तो यह जहाँ–जिसके साथ जाना चाहे-जा सकती है। सदा ख़ुश रहे—यही कामना करता हूँ . . .!” और शेखर शांत हो गया था, जैसे दौड़ता हुआ घोड़ा सहसा बैठ जाता है! 

रेणु अंतर्द्वंद्व में घिर चुकी थी! उसका मन दो हिस्सों में बँट चुका था। एक छोर से आवाज़ आ रही थी, “रेणु मैदान साफ़ हो चुका है, लपक ले रोहित शर्मा को, जैसे कभी शेखर को लपका था। बैंक नौकरी है, लाखों डिपोज़िट होगा। रुपए पैसों की तंगी न होगी कभी। आगे बढ़ो आगे और कह दे ज़माने से ’रोहित शर्मा आज से मेरा पति है’ यही मेरा वर्तमान है। बाक़ी गुज़रा हुआ ज़माना है।”

लेकिन मन के दूसरे हिस्से ने लताड़ा था, “तुम कैसी माँ हो, एक बार भी बच्चों के वर्तमान और भविष्य के बारे नहींं सोचा। शेखर से तुम्हेंं शिकायत हो सकती है लेकिन बच्चों के प्रति कैसे निष्ठुर हो गई तू। जिसे तुमने अपनी कोख में रखा, जन्म दिया, दूध पिलाया और आज एक दम से पराई हो गई हो! केवल अपनी शरीर की भूख को मिटाने के ख़ातिर ही न यह सब किया। सुना नहींं, समीर साहब ने क्या कहा–दो महीने पहले तक रोहित शर्मा किसी ओर की बाँहों में समाता था! घर में शादी किसी ओर के साथ करने की बात हो रही है, ऐसे लोगों से तुम प्यार की उम्मीद लगाए बैठी हो—इससे तो अच्छा शेखर है जिसका पास्ट भी तुम हो और फ़्यूचर भी तुम ही रहोगी! शेखर हीरा है तो रोहित शर्मा काँच है काँच! . . . सँभल जाओ, पैर में कुल्हाड़ी मत मार लो . . .!” 

तभी रेणु राजन चिहुँक उठी थी—“मैं रेणु के साथ अभी, यहीं शादी करने को तैयार हूँ!” रोहित शर्मा अचानक से उठ खड़ा हो गया था। उसने रेणु की ओर देखते हुए कहा, “मेरे घर में मेरी शादी की सिर्फ़ बात चल रही है—शादी हुई नहींं है मेरी!” रोहित शर्मा ने जैसे सफ़ाई दी थी। 

थोड़ी देर तक शोरगुल हुआ, “दो मर्दों के बीच एक औरत को ज़लील किया जा रहा है!” भीड़ में कहीं से आवाज़ आई। इससे पहले कि समीर साहब इस पर कुछ बोलते, शेखर राजन उठ खड़ा हो गया था! नज़र भर सभी ओर देखा फिर छोटी बेटी को गोद में उठाया, बेटे का बायाँ हाथ पकड़ा और माँ तारा देवी से कहा, “चलो माँ, अब हमारा यहाँ कोई काम नहींं रह गया। दीपू-रूपू को भूख लगी होगी—चलता हूँ थानेदार साहब! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! रेणु को नये पति के साथ विदा कर दीजिए . . .!” और शेखर चल पड़ा . . .! 

रेणु को लगा। सीना चीर उसके जिगर-कलेजों को एक आदमी लिए जा रहा है और दूसरा उसके शरीर को खींचने में लगा हुआ है। और वह चीख रही है पर उसकी आवाज़ कोई नहीं सुन पा रहा है। 

मन का हिस्सा पुनः जाग उठा, “रेणु रोहित के साथ निकल जाओ। गोल्डेन चांस है! शेखर ने तुम्हेंं आज़ाद कर दिया . . .!” 

“मूर्ख औरत! क्षण भंगुर ख़ुशियों के लिए, सम्पूर्ण ख़ुशियों के ख़जाने को लुटाने की सोच रही है। शेखर राजन जैसा पति बहुत कम को नसीब होता है . . .” अंतरात्मा ने धिक्कारा था। सोये से जैसे जाग उठी थी रेणु! खड़े-खड़े ज़ोर से चिल्लाई, “शेखर . . . शेखर . . . शेखर!” इसके साथ ही वह मूर्छित होकर वहीं गिर पड़ी थी। लोग उसकी ओर लपके। समीर साहब ने सबको बरज दिया, “रुक जाओ! कोई उसके क़रीब नहींं जायेगा!” 

समीर साहब ने सिपाही से पानी लाने को कहा। चेहरे पर पानी के छींटें पड़ते ही रेणु हड़बड़ा कर उठ खड़ी हो गई। उसने सीधे सामने की ओर देखा। नाक के सीध! 

उधर शेखर जो स्कूटी स्टार्ट कर रहा था। आवाज़ सुनकर रुक गया था। 

और रेणु दौड़ पड़ी थी . . .! 

सीधे शेखर के पास जाकर रुकी। अब केवल उसकी साँसें दौड़ रहीं थीं। हाँफते हुए कहा था उसने, “शेखर मुझे माफ़ कर दो! मर जाऊँगी पर अब तुम्हें छोड़ कहीं नहींं जाऊँगी . . .!” 

“रख लो यार! ठोकर खा चुकी है!” किसी ने कहा

“हाँ हाँ रख लो, घर ले जाकर गंगा जल छिड़क देना! शुद्ध हो जाएगी!” भीड़ ने आवाज़ लगाई। 

उधर थाना परिसर गूँज उठा—

“समीर साहब ज़िंदाबाद!” 

“महापंचायत ज़िंदाबाद . . .!” 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं