साथ मेरे पुरखों का, इक निशान रहने दो
शायरी | ग़ज़ल अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’1 Jun 2023 (अंक: 230, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
लूट लो हमें पर, तुम यह मकान रहने दो
साथ मेरे पुरखों का, इक निशान रहने दो
घर से दूर जाने का, प्रावधान रहने दो
गाँव में हमारे तुम, कुछ किसान रहने दो
मैं अगर बहक जाऊँ, मीत बन के समझाना
और नासमझ को तुम, ख़ुश-गुमान रहने दो
ये लड़ाई झगड़े छोड़ो यहाँ दलीलें सब
जो हुआ भुलाकर ख़ुश वर्तमान रहने दो
इस जहाँ से आगे बढ़ना है अब ‘शिवा’ तुम्हें
तुम बढ़ो नयी ऊर्जा से थकान रहने दो
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