मोबाइल का दौर
काव्य साहित्य | कविता अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
(रूप घनाक्षरी छंद)
8, 8, 8, 8
वो खिलौने टूट गए, खेल सभी छूट गए,
खेलकूद हुआ कम, साथ में है दूरभाष . . .
होती सब चाह पूरी, हो गया यह ज़रूरी
दिन में रहता साथ, रात में है दूरभाष . . .
गाँव में हरियाली थी, मन में ख़ुशहाली थी
संपर्क इसी से होता, बात में है दूरभाष . . .
मोबाइल जो साथ है, व्यस्त सभी का हाथ है
खाने का समय नहीं, हाथ में है दूरभाष . . .
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